अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान वो प्रधानमंत्री जो फांसी से पहले सारी रात रोता रहा
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 43 साल पहले 04 अप्रैल, 1979 को फांसी पर लटकाया गया था. उन पर एक हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप था. अदालत ने उन्हे गुनहगार पाया और फांसी की सजा दी. हालांकि अब तक ये माना जाता है कि भुट्टो को दी गई फांसी सियासी साजिश थी, जिसे सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने रचा था. फांसी पर चढ़ने से पहले भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं.’ कहा ये भी जाता है कि गिरफ्तारी के समय पाकिस्तान के इस पूर्व प्रधानमंत्री की पिटाई भी की गई. जब उन्हें फांसी लगनी थी, उस रात वो रोते रहे. उन्हें फांसीघर तक स्टेचर पर लाद कर जबरन ले जाया गया.
जुल्फिकार अली भुट्टों की फांसी की सजा माफ करने के लिए दुनियाभर से अपील की गई थी. इंदिरा गांधी उस समय शासन में नहीं थीं लेकिन उन्होंने भी उन्हें सजा नहीं देने की अपील की थी लेकिन तत्कालीन सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने सारी अपीलें ठुकरा दी थीं. जिया उल हक ही वो शख्स भी थे, जिन्हें भुट्टो ने सैन्य प्रमुख बनवाया था. बाद में उन्होंने ना केवल उनका तख्ता पलटा बल्कि फांसी तक भी पहुंचाया. तब भारत के प्रधानमंत्री मोरारजीभाई देसाई थे, जिन्होंने इसे पाकिस्तान का आंतरिक मामला कहकर माफी की अपील नहीं की थी.
बाद में जिया उल हक की विमान हादसे में मौत हो गई
जिया-उल-हक की 1988 में जब विमान दुर्घटना में मौत हो गई तो भी यह आशंका जताई गई थी कि उसके पीछे कोई षड्यंत्र था. हालांकि कुछ साबित नहीं हुआ.
क्या हुआ था तख्तापलट की रात
अपने पिता की गिरफ्तारी के समय के दृश्य का वर्णन बेनजीर भुट्टो ने इन शब्दों में किया, ” मेरी मां चीखते हुए मेरे कमरे में आईं, जागो, जागो, कपड़े पहनो, जल्दी’. मेरी मां चीख रही थीं. उन्होंने बहन को जगाने के लिए कहा. फौज ने हमारे घर पर कब्जा कर लिया था. कुछ ही मिनटों में मैं मां के कमरे में आ गई. हम लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि हुआ क्या है. हमला आखिर क्यों हुआ. एक दिन पहले ही तो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और विपक्ष के बीच तो समझौता हो चुका था. अगर फौज ने तख्ता पलट दिया तो क्या फौजी अब तक ड्र्रामा कर रहे थे? जनरल जिया और फौज के दूसरे कमांडर दो दिन पहले ही तो मेरे पिता के पास आकर वफादारी का वादा करके गए हैं.’
फौजी पिता को पीटते हुए ले गए
बेनजीर ने लिखा, ‘मेरे पिता फोन पर फौज प्रमुख जनरल जिया और मंत्रियों से बात कर रहे थे. तब तक फौज हमारे घर पर पहुंच चुकी थी. सैनिक आए. पिता को पीटते हुए बाहर ले गए. मैंने देखा कि बाहर फौजियों के सिगार चमक रहे थे. उनके हंसी-ठट्ठे की आवाज अंदर तक आ रही थी. जब मेरे पिता की बात फ्रंटियर के गवर्नर से हो रही थी, तभी फोन का कनेक्शन कट गया था.
एक पुलिस वाला छिपते हुए पीछे दरवाजे से आया
‘मेरी मां का चेहरा घबराहट से पीला पड़ गया. इससे पहले एक पुलिस वाले ने फौज को हमारे प्रधान मंत्री आवास को घेरते हुए देखा था. वह अपनी जान का जोखिम उठाते हुए किसी तरह छिपते-छिपाते हमारे दरवाजे तक आया। उसने हमारे नौकर उर्स से हड़बड़ाहट भरी आवाज में धीमे से कहा, भुट्टो साहब को खबर कर दो कि फौज उनको मार डालने के लिए बढ़ रही है. वह तुरंत कहीं हिफाजत से छिप जाएं.’
भुट्टो ने कहा था- उन्हें आने दो
‘मेरे पिता ने यह खबर पूरे धीरज से सुनी. उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी खुदा के हाथ में है. उन्होंने उर्स से कहा कि फौज मेरी जान लेने आ रही है तो आए मेरे छिपने का कोई सवाल नहीं है. इसकी भी कोई जरूरत नहीं है कि तुम लोग उन्हें रोको. उन्हें आने दो.’
जब भुट्टो ने सैन्य प्रमुख जिया को फोन मिलाया
प्रधानमंत्री भुट्टो ने तब बेटी सनम के फोन का इस्तेमाल करते हुए सैन्य प्रमुख जिया उल हक को फोन मिलाया. जिया ने तुरंत फोन उठाया. उन्होंने कहा, ‘सर,मुझे अफसोस है, लेकिन ये मुझे करना पड़ा. मुझे आपको अभी बस कुछ समय के लिए हिरासत में लेना पड़ रहा है. लेकिन तीन महीने में मैं दोबारा चुनाव करवाऊंगा. आप फिर प्रधानमंत्री बनेंगे. मैं आपको सलाम करूंगा . अब मेरे पिता समझ गए कि इस फसाद के पीछे कौन है.’
बेनजीर का भाई मीर फौज से भिड़ना चाहता था
‘मेरे पिता का चेहरा फोन रखते समय कठोर हो गया. मेरे भाई मीर और शाहनवाज तेजी से कमरे में आए. मीर ने कहा- हम मुकाबला करेंगे. पिता ने उसे रोका, नहीं, फौज से कभी मत उलझना. जनरल हमें मार डालना चाहता है. हमें उन्हें कोई बहाना नहीं देना चाहिए. मुझे दो साल पहले हुई मुजीब की हत्या याद आती है.’
‘मां ने कुछ पैसे देकर मेरे भाइयों से कहा कि तुम लोगों को सुबह कराची निकल जाना है. अगर हम शाम तक नहीं पहुंचे तो तुम लोग पाकिस्तान से बाहर चले जाना.’ आखिरकार जुल्फिकार भुट्टो गिरफ्तार कर लिए गए. जाने से पहले बेनजीर ने चिल्लाकर हाथ हिलाते हुए बदहवासी में कहा, ‘अलविदा पापा’, कार में सवार भुट्टो पीछे मुड़कर देखते हैं और मुस्कराते हैं.
‘जीने के लिए इंसाफ के लिए चाहिए जिंदगी’
अक्टूबर, 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ हत्या का मुकदमा शुरू किया गया. मुकदमा लोअर कोर्ट में नहीं सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुआ. उन्हें फांसी की सजा मिली. सुप्रीम कोर्ट ने भी बहुमत निर्णय में फांसी की सजा बहाल रखी. अप्रैल, 1979 में रावलपिंडी जेल में उन्हें फांसी से लटका दिया गया. इससे पहले बेनजीर ने जेल में अपने पिता से मिलकर उन्हें बताया था कि कितने देशों ने दया की अपील पाकिस्तानी हुक्मरानों से की है.
जिया उल हक ने दया नहीं दिखाई
अनेक देशों ने भुट्टो के प्रति नरमी बरतने के लिए जिया से अपील की. लेकिन जिया ने दया नहीं दिखाई. भुट्टो ने अपने बचाव में अदालत में कहा था कि ‘मुझे अपनी पैरवी जुल्फिकार अली भुट्टो को बेकसूर साबित करने के लिए नहीं करनी है. मैं यह बात गहराई से सोचने के लिए सामने लाना चाहता हूं कि यह मुकदमा एक भोड़ी बदशक्ल नाइंसाफी का उदाहरण बन गया है. हर कोई जो हाड़-मांस का पुतला है, उसे एक दिन जरूर दुनिया से जाना है. मैं जीने के लिए जिंदगी नहीं चाह रहा हूं.मैं इंसाफ मांग रहा हूं.’
भुट्टो के भारत में कई समर्थक थे. इसका एक कारण यह भी था कि वे भारत में ही पले-बढ़े थे. मुंबई में पले-बढ़े और पढ़े भुट्टो की कई प्रसिद्ध भारतीय लोगों से बहुत पहले से दोस्ती थी. भुट्टो की मुंबई में पुश्तैनी प्रॉपर्टी भी थी और मुंबई के दौर के उनके कई किस्से लोग आज भी सुनाते हैं.