उत्तराखण्ड
एक बार फिर बोतल से बाहर निकला गोल्डन फारेस्ट की जमीन का जिन्न, अधिकारियों में हड़कंप
देहरादून : गोल्डन फारेस्ट की जमीन का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। इससे प्रशासन के अधिकारियों की पेशानी पर बल पडऩे लगे हैं। वजह यह कि जमीन के राज्य सरकार में निहित होने के बाद भी अधिकांश जमीन को खुर्दबुर्द किया जा चुका है। जो अधिकारी कुर्सी पर हैं, वह सभी नए हैं और अब उन्हें नए सिरे से कसरत करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित है यह प्रकरण
यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जमीन की नीलामी की जानी है और निवेशकों का पैसा लौटाया जाना है। प्रकरण के निस्तारण तक जमीन को राज्य सरकार में निहित कर दिया गया था, ताकि इन्हें खुर्दबुर्द न किया जा सके। हालांकि, समय के साथ जमीन बिकती चली गई और अधिकारी कुछ नहीं कर पाए।
अधिकारी नींद से तब जागे, जब वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अचानक जमीन की एकमुश्त नीलामी कराने का निर्णय लिया। तब हाक कैपिटल नामक कंपनी ने 721 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी, लेकिन मामला बैंक गारंटी पर आकर अटक गया था।
उसी दौरान प्रशासन ने जमीन की पैमाइश भी शुरू की थी, लेकिन बात आगे नहीं बढऩे के कारण अधिकारी ढीले पड़ गए। अब सुप्रीम कोर्ट की गोल्डन फारेस्ट कमेटी फिर सक्रिय हो गई है। कमेटी के सदस्यों ने सोमवार को जिलाधिकारी से मुलाकात कर जमीन का अपडेट मांगा। इसके बाद जिलाधिकारी ने सभी तहसीलों को निर्देश दिए कि 15 दिन के भीतर जमीन का सत्यापन कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
विभागों को दे दी 454 हेक्टेयर भूमि
गोल्डन फारेस्ट की भूमि सरकार में निहित होने के चलते सरकार ने इसे अपनी संपत्ति मान लिया था। इसी क्रम में अक्टूबर 2019 में राजस्व विभाग ने 454 हेक्टेयर भूमि विभिन्न विभागों को आवंटित कर दी थी। हालांकि, वर्तमान में राज्य के इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।
यह है गोल्डन फारेस्ट प्रकरण
वर्ष 1997 में गोल्डन फारेस्ट कंपनी ने सेबी के नियमों के विपरीत देहरादून और आसपास के क्षेत्रों में करीब 12 हजार बीघा भूमि खरीदी थी। इसके लिए नागरिकों से पैसा लेकर दोगुनी रकम वापस देने का झांसा दिया गया। सेबी की कार्रवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को भंग कर जमीन को राज्य सरकार में निहित करा दिया था। इसके साथ ही जमीन की नीलामी कराने के लिए कमेटी का गठन किया गया।

