राष्ट्रीय
आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के खिलाफ,सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी
हाइलाइट्स
1.आर्थिक आधार पर दिए गए 10 फीसदी आरक्षण का मामला
2.सुप्रीम कोर्ट में तीन दिनों से बहस जारी
3.मामले की सुनवाई अब अगले मंगलवार को होगी
दिल्ली. देश में आर्थिक आधार पर दिया गया 10 फीसदी का आरक्षण संविधान सम्मत है या नहीं, इस पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है. 5 सदस्यीय संविधान खंडपीठ के समक्ष बीते तीन दिनों से बहस हो रही है. आर्थिक आरक्षण का विरोध करते हुए इसे संविधान के खिलाफ बताया गया और समर्थन करने वाले वर्ग ने इसे समय की जरूरत करार दिया. मामले की सुनवाई अब अगले मंगलवार को होगी. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस आरक्षण के विरोध में कहा गया कि आरक्षण समाज के वंचित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के विचार से दिया गया था, लेकिन आर्थिक आधार पर आरक्षण ने इसे आर्थिक रूप से उद्धार करने की योजना में बदल दिया.
आरक्षण वर्ग को दिया जा सकता है, किसी खास जाति को नहीं. आर्थिक आधार पर आरक्षण भेदभाव करता है, क्योंकि ये सिर्फ अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए है और इसमें पिछड़ी जातियों के ग़रीबों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. इंदिरा साहनी फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट खुद कह चुका है कि आरक्षण कोई ग़रीबी हटाओ योजना नहीं है. कोर्ट में कहा गया कि आरक्षण का उद्देश्य आर्थिक सहायता पहुंचाना नहीं, बल्कि सामाजिक असमानता दूर करना है.
बताई गई आरक्षण के पीछे की वजह
कोर्ट में आरक्षण को लेकर संविधान निर्माताओं की सोच की तरफ़ भी ध्यान आकर्षित करवाया गया. कहा गया कि आरक्षण के पीछे की वजह थी कि पिछड़े लोगों को वाजिब प्रतिनिधित्व मिले और वो मुख्य धारा में आकर सत्ता का हिस्सेदार बने. आरक्षण उन लोगों के लिए था जो सदियों से अन्याय को झेलते आ रहे हो. अगर आरक्षण के लिए कोई और मानदंड आता है तो ये लोकतांत्रिक व्यवस्था और बराबरी के अधिकार का उल्लंघन होगा. सामाजिक रूप से पिछड़े होने का आकलन करने के लिए आर्थिक आधार नहीं हो सकता और कुछ ख़ास कारणों को छोड़कर 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार नहीं किया जा सकता है.
कोर्ट में दलील दी गई कि आरक्षण के पीछे के कारण को समझना होगा. सदियों से भेदभाव हुआ. महाभारत में एकलव्य के साथ क्या हुआ, देश के राष्ट्रपति को एक मंदिर से बाहर किया गया. सदियों के इस भेदभाव को दूर करने के लिए आरक्षण दिया गया. आरक्षण की मूल सोच सामाजिक और शैक्षिक तौर पर आगे बढ़ाने की थी, ये कभी भी आर्थिक तौर पर आगे बढ़ाने की नहीं है.
आर्थिक आरक्षण के पक्ष में दी गई दलील
वहीं, आर्थिक आरक्षण के पक्ष में दलील दी गई कि लंबे समय से इसका इंतजार किया जा रहा था. आर्थिक रूप से आरक्षण का सभी को स्वागत करना चाहिए. संविधान में समय समय पर बदलाव होते रहे हैं और इस आरक्षण को भी समय की जरूरत के हिसाब से बदलाव कर लाया गया है.
अब इस मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी. सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट इस बेहद जटिल विषय पर अपना फ़ैसला सुनाएगा. उम्मीद ये कि जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद इस विषय पर बहस पर रोक लग सकेगी.

