राष्ट्रीय
नोटबंदी भ्रष्टाचार निवारण का मन्त्र नहीं
अनिल धर्मदेश
30 सितंबर तक 2000 के नोटों की वापसी के निर्णय पर देश भर से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। प्रतिपक्ष और सत्ता के समर्थन में तरह-तरह के विचार और तर्कों के बीच सामान्य नागरिक भी आरबीआई के इस निर्णय को नोटबंदी ही मान रहा है। विपक्ष इस निर्णय को तुगलकी फरमान बताकर दावा कर रहा है कि सरकार ने 2000 का नोट चलाए जाने के अपने ही निर्णय को वापस लेकर सिद्ध कर दिया कि पिछली नोटबंदी और उसके बाद लिए गए फैसले गलत थे। जबकि सरकार के समर्थन में खड़े लोग इसे भ्रष्टाचार पर एक और सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में परिभाषित कर रहे हैं। जबकि निर्णयों की दीर्घकालिक प्रक्रिया को दृष्टिगत रखते हुए आरबीआई का वर्तमान निर्णय न ही किसी त्रुटि का सुधार है और न तो यह भ्रष्टाचार पर कोई स्ट्राइक ही है।लोकतंत्र में प्रत्येक राजनीतिक दल की अपनी एक विचारधारा होती है, जिसके आधार पर सरकारें आर्थिक और सामाजिक निर्णय लेती हैं। कांग्रेस की अधिकाधिक व्यापार की नीति से अलग वर्तमान सरकार वाणिज्यिक अनुशासन और पारदर्शिता को मजबूत करने के प्रति संकल्पित प्रतीत होती है। जिसे मूर्त करने के लिए किए गए प्रयासों के कारण हालिया वर्षों में वैश्विक मानदंडों पर भारतीय अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता और विश्वसनीयता को कुछ हद तक स्वीकार्यता भी मिली है। हालांकि अर्थव्यवस्था के वैश्विक मायनों की बराबरी और निर्यात संवर्धन सुनिश्चित करने के लिए बहुत से ढांचागत बदलाव अभी भी प्रतीक्षित हैं।
भारत में डिजिटल पेमेन्ट की विश्व रिकॉर्ड संख्या के मद्देनजर 2000 के नोटों की वापसी असल में अर्थव्यवस्था से बड़े नोटों के खात्मे का सूचक है। समृद्ध और सुदृढ अर्थव्यवस्था वाले देशों में चलायमान मुद्रा का अधिकतम मूल्य 100 ही है। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन इसके उदाहरण हैं। जबकि भारी मुद्रास्फीति, केंद्रीय बैंक के लचीले रवैये और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में पांच-दस हजार या एक लाख रुपए के नोट चलाना सरकारों की मजबूरी बन गयी है। चलन में बड़े नोट का होना वास्तव में सुदृढ़ के बजाय एक लचर अर्थव्यवस्था का द्योतक है। डॉलर, यूरो युआन और रूबल की तर्ज पर भारतीय रुपए को वैश्विक चलन में मान्यता दिलाने की जारी मुहिम के बीच 2000 के नोटों का चलन बंद किया जाना आर्थिक सुधारों का ही एक अहम पड़ाव है। यही प्रक्रिया जारी रही तो भविष्य में 500 और 200 रुपए के नोटों का चलन भी बंद किया जा सकता है।गौरतलब है कि भारत में अभी कुल 31.22 लाख करोड़ के करेंसी नोट चलन में हैं, जिसके सापेक्ष 3.6 लाख करोड़ मूल्य के 2000 नोट ही बाजार में हैं। आरबीआई के निर्णय से 2000 के सिर्फ 10.8% करेंसी नोट ही बैंकों में लौटेंगे, जिसके लिए 30 सितंबर तक का दीर्घ समय दिया गया है। इस दौरान भी यह मुद्रा लीगल टेंडर ही बनी रहेगी, अर्थात इसका लेन-देन जारी रखा जा सकता है। जबकि पिछली नोटबंदी में 1000 और 500 के नोटों को रातोंरात अमान्य कर दिया गया था, जो कुल चलायमान मुद्रा का लगभग 86% था।
स्वतंत्रता के बाद से नोटबंदी की तरह ही नोट वापसी का निर्णय भी अनेक अवसरों पर लिया गया है। मार्च 2014 में भी आरबीआई ने क्लीन नोट पॉलिसी के तहत 2005 के पूर्व मुद्रित सभी करेंसी नोट वापस ले लिए थे। 2018-19 से 2000 के नए नोटों की छपाई बंद होने के बाद देश में यह धारणा बन गयी थी कि भविष्य में इसका चलन बंद हो जाएगा। ऐसे में आरबीआई का यह क्रमबद्ध व्यवस्थागत निर्णय भ्रष्टाचार पर कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है। हालांकि 3.6 लाख करोड़ रुपए बैंकों में लौटने के परिणामस्वरूप नकदी आधिक्य का लाभ सस्ते कर्ज और महंगाई पर अंकुश के साथ ही रियल स्टेट कारोबार में बढ़ोतरी के रूप में दिख सकता है।हालांकि अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण और आर्थिक असमानता पर लगाम के लिए भ्रष्टाचार उन्मूलन भारत मे कई दशकों से अभी तक एक चुनौती है। सरकार और केंद्रीय बैंक इससे मुक्ति के लिए विगत लगभग एक दशक से लगातार निर्णय ले रहे हैं मगर इसकी गहरी जड़ें अभी भी समाज में फैली हुई हैं। देश भर में जनधन खाते खोले जाने के बाद श्रम और बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन असल में 2018 में हुई नोटबंदी के पूर्व की तैयारियां थीं। तत्पश्चात जीएसटी और और पूर्णतः डिजिटल कराधान व्यस्था के साथ ही डिबिटी, आधार सत्यापन और पोर्टल आधारित निविदा-व्यापार-भुगतान प्रणाली से भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक अंकुश लगा हो पर हवाला कारोबार, कर चोरी, तस्करी, डिजिटल धोखाधड़ी और राज्यों के भ्रष्टाचार अभी भी यथावत हैं। मूलभूत सुविधाओं से संबंधित सरकारी कार्यालयों में घूसखोरी और पक्के बिलों पर उत्पाद की अंडरबिलिंग का तोड़ अभी भी नहीं ढूंढा जा सका है। मामूली क्लर्क, सिपाही और जेई के पास करोड़ों की संपत्ति अभी भी समाज का सत्य है। जबकि बेनामी संपत्ति पर भी अपेक्षित कठोरता और कार्यवाही अभी तक धरातल पर दिखाई नहीं देती, जबकि कालेधन का एक बड़ा हिस्सा इसी में निवेशित है। भ्रष्टाचार पर पूर्ण नियंत्रण के लिए पारदर्शिता और डिजिटल व्यस्था खड़ी करने के साथ ही सरकारों को भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आपराधिक प्रावधानों को और कठोर बनाने के साथ ही दंड प्रक्रिया को और तेज करने के रास्ते तलाशने होंगे। अन्यथा व्यवस्था और कारोबार का एक छोटा-सा वर्ग व्यापक समाज के संसाधनों का अतिक्रमण करने से नहीं चूकेगा।अनिल धर्मदेश
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