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महेश शर्मा: 12 साल के लंबे वक्त बाद खत्म हुई टीस…
मनोज लोहनी
राजनीति ही राजनीति और इसके न जाने कितने आयाम हैं। वक्त बदलता है, दूरियां पास में बदल जाती हैं, औ यह सब निर्भर करता है परिस्थितियों पर। यहां समय भी लगता है। समय एक चुनाव से दूसरे चुनाव आने तक का। वैसे भी अब राजनीति में दल, विचारधारा, विरोध, यहां-वहां जाने के कोई मायने नहीं हैं, क्योंकि यह एक सामान्य बात है, और जैसा कि पहले कहा, यह परिस्थितिजन्य विषय हैं। समय के साथ अगर सब कुछ बदलता है तो भला राजनीति इससे अछूती कैसे रह सकती है। विधानसभा चुनावों में उत्तराखंड समेत पांच राज्यों में राजनीति जिस तरह घट रही है, वह कुछ भी अलग नहीं है। इस वक्त हम जिस मुद्दे की बात कर रहे हैं, वह नैनीताल के कालाढूंगी विधानसभा में कांग्रेसी राजनीति का है। पूरे 12 साल लगे यहां इस वक्त कांग्रेस प्रत्याशी महेश शर्मा के मन की टीस खत्म होने में। इस वक्त कांग्रेस के टिकट के लिहाज से सब कुछ उनके हिसाब से घटित हुआ, सिवाय टिकट बदलने से पहले जब उनकी जगह टिकट डॉ. महेंद्र सिंह पाल को दे दिया गया था। यह सब लोगों के लिए घोर आश्चर्य का विषय था कि जिन महेंद्र सिंह पाल ने कभी यहां से दावेदारी तक नहीं की, आखिर उन्हें कैसे यहां से कांग्रेस का टिकट कैसे मिल गया। यह घोर आश्चर्य ठीक वैसा ही था जैसा सन २०१२ के विधानसभा चुनावों में महेश शर्मा के साथ तब घटित हुआ जब उनकी जगह कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी को कांग्रेस का टिकट मिल गया। उस वक्त भी महेश शर्मा की कांग्रेस और संगठन में अच्छी पकड़ थी। संगठन और गांव-गांव की राजनीति के वह पुराने कार्यकर्ता रहे। फिर यह बात भी उनके हक में थी कि उस वक्त कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष खुद यशपाल आर्य थे जो जिनके कि महेश शर्मा करीबी थे। उस वक्त जब महेश शर्मा का टिकट कटातो नैनीताल रोड में जनता बैंक्वेट हॉल के बाहर पत्रकारों से महेश शर्मा का टिकट कटने के सवाल पर यशपाल काफी भावुक हो गए थे। बात चूंकि ऊपर की थी, लिहाजा कोई कुछ नहीं कर सकता था। उस वक्त महेश शर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर अपना खासा दमखम दिखाया था। वक्त बीता, परिस्थितियां बदलीं और २०१७ के चुनाव में भी उन्हें कांग्रेस से टिकट नहीं मिला, एक स्वाभाविक दावेदार होने के बावजूद। फिर २०२२ आया और शायद महेश शर्मा के साथ वही कहानी दोहराई जानी थी जो कि २०१२ में हुई थी। ऐसा ही हुआ भी और टिकट ले आए पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल। इस पर खूब हो-हल्ला हुआ। फिर कांग्रेस में हलचल मची तो आखिर कांग्रेस को महेश शर्मा को नकार नहीं पाई। तीन दिनों के शोर-शराबे के बाद आखिरकार महेश शर्मा कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित हो गए। इस सिंबल के लिए उन्होंने २०१२ से इंतजार किया था। कांग्रेस को मजबूत भी बनाया और कालाढूंगी विधानसभा में लगातार सक्रिय भी रहे। उनकी छवि वैसे भी एक ऐसे नेता की है जिसका खुद का भी जनाधार मजबूत है। अब वक्त के साथ सब कुछ सामान्य होता गया और आखिर आज महेश शर्मा खुद उन प्रकाश जोशी से मिलने पहुंचे जिन्होंने २०१२ में महेश शर्मा को कांग्रेस के टिकट से वंचित कर दिया था। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि राजनीति में यह सब सामान्य है, प्रकाश जोशी की भी इच्छा थी चुनाव लडऩे, उन्होंने लड़ा और इस बार वह अगर महेश के साथ खड़े हैं तो यह कांग्रेस और महेश-प्रकाश दोनों के लिए अच्छी बात ही हुई।