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जानिए क्या होती है लू और गरम हवाएं, जो अब कुछ दिनों तक बेहाल करती रहेंगी हमें
गर्मी का मौसम हालांकि मार्च में ही दस्तक दे चुका है. 122 सालों में इस बार मार्च सबसे गर्म साबित हुआ है. अब अंदाज है कि अप्रैल और मई महीने भी तपने वाले होंगे. गर्म हवाएं यानि लू चलेगी और बढ़ी गरमी बेचैनी बढ़ाने लगेगी. आमतौर पर लू तब चलती है तब तापमान सामान्य तापमान से 04-05 डिग्री ऊपर चला जाता है. मौसम विभाग का मानना है कि उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला जाएगा.
ये मौसम स्वास्थ्य के लिए तो खराब होता ही है बल्कि कई बार लू के थपेड़े जानलेवा भी हो जाते हैं. अगर भारतीय मौसम विभाग की मानें तो अब यूपी, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड के गरम मौसम में झुलसने का समय है. अंदाज है कि दिल्ली और आसपास 06 अप्रैल तक तापमान 42 डिग्री तक जा सकता है.
गर्मी ने कहर ढाना शुरू कर दिया है और हाल ही में पश्चिमी राजस्थान के फालोड़ी में तापमान 50 डिग्री के ऊपर पहुंच गया. मौसम विभाग ने जानकारी दी थी कि फालोड़ी में तापमान 50.5 डिग्री पहुंच गया है. वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान के कराची शहर में लू की वजह से 65 लोगों की जान चली गई. पिछले कुछ दिनों से वहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस चल रहा है.
क्या मतलब होता है लू का
गर्मी के मौसम से जूझ रहा इलाका जहां तापमान, अपेक्षित तापमान से कहीं ज्यादा हो. 05 दिनों से ज्यादा तक ये स्थिति जारी रहे तो इसे लू माना जाता है. इसके साथ ही मौसम में नमी भी आ जाती है. किसी भी क्षेत्र का अपेक्षित तापमान किसी भी मौसम में कितना होगा, इसकी गणना तापमान के पिछले 30 साल के रिकॉर्ड के आधार पर की जाती है.
गरम हवाएं आमतौर पर एक एरिया के ऊपर बने अधिक दबाव की वजह से पैदा होती हैं. यह अधिक दबाव काफी देर तक बना रहता है, अक्सर कई दिन और हफ्ते भी.
पर्यावरण के लिए क्यों अच्छी होती हैं गरम हवाएं
जानकार कहते हैं कि लू या गरम हवाएं पर्यावरण के लिए अच्छी होती हैं. सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन अच्छा मॉनसून इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी जम़ीन ठीक से गरम हुई है या नहीं. सूरज और बारिश का आपस में गहरा रिश्ता है और जितना तेज़ सूरज होगा, मॉनसून को आने में उतनी ही आसानी होगी.

लू का हमारे शरीर पर असर कैसा पड़ता है
हमारे शरीर का मूल तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है यानि इस तापमान पर हमारे शरीर से काम लेने वाले एनज़ाइम्स सबसे अच्छे तरीके से प्रदर्शन कर पाते हैं. अफसोस कि इस तापमान के बावजूद गरमी को हम एक डिग्री भी ज्यादा सहन नहीं कर पाते.
भारत में विज्ञान की दुनिया के जाने-माने पत्रकार पल्लव बागला ने कुछ समय पहले एक लेख में लिखा था, ” इंसान के लिए गरम खून का होना जरूरी है. लेकिन इस खून को गर्म रखने के लिए उसे बहुत कुछ करना पड़ता है. हम खुद को गरम रखने के लिए बहुत सारी ऊर्जा ग्रहण करते हैं. जहां हमारे शरीर के अंदर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. वहीं त्वचा का तापमान 33 डिग्री रहता है. यानि अंदरूनी हिस्से से त्वचा तक आते आते काफी तापमान कम हो जाता है और तभी शरीर ठंडा रह पाता है.”

