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International Day of Forests 2022 : उत्तराखंड में घटते वनों के दायरे से बढ़ रहा वन्य जीवों का पलायन
International Day of Forests 2022 पहाड़ों में वनों का दायरा लगातार घट रहा है। जिससे जंगलों से पलायन कर वन्य जीव शहरों की ओर आ रहे हैं। जंगली सुअर खेती को बर्बाद कर रहे हैं। जबकि तेंदुए हमला कर लोगों को अपना निवाला बनारहे हैं। कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर है। जिसकी वन विभाग के पास कोई जानकारी तक नहीं हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में विकास के नाम पर जंगलों का अंधाधुन कटान लगातार बड़ी समस्या बनती जा रही है। चाहे सड़क हो या फिर निर्माण कार्य इसके लिए जंगलों का कटान आम हो गया है। अल्मोड़ा जिले में कुल क्षेत्रफल का 54.68 प्रतिशत वन क्षेत्र है। हालांकि 50 प्रतिशत से अधिक वन का दायरा है, लेकिन इसके बाद भी लगातार हो रहे वनों के कटान से समस्या बढ़ गई है।
वन दायरा कम होने से जंगली जानवर आबादी की ओर पलायन कर रहे हैं। इससे काश्तकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जंगली जानवर खेती को चौपट कर रहे हैं, खेती का पूरी तरह विनाश हो रहा है। वहीं जंगली जानवरों का आंतक भी बढ़ गया है। तेंदुए लगातार आबादी की ओर आ रहे हैं। मुख्यालय समेत विभिन्न क्षेत्रों में तेंदुओं का आतंक बना हुआ है। कई लोगों को तेंदुए घायल कर चुके हैं, जबकि कइयों को निवाला भी बना चुके हैं।
तेंदुओं के हमलों के मामले
बीते वर्ष तेंदुए ने जिले भर में 15 लोगों को घायल और दो लोगों को निवाला बनाया था। जबकि 2021 में भी 15 लोग घायल, 2020 में 11 घायल और दो की मौत हुई थी।
बढने की बजाय कम हो रहे जंगल
काश्तकार मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि पर्वतीय इलाकों में जंगलों का विस्तार बढ़ने के बजाय लगातार कम हो रहा है। अपने निजी लाभ के लिए लोग चोरी छिपे वनों का दोहन कर रहे हैं। जंगली जानवरों को अब जंगल में न तो भोजन उपलब्ध हो पा रहा है और न ही सुरक्षा। भय और भोजन के मारे वन्य जीव अब बस्ती की ओर आने लगे हैं। सरकार को इस बारे में गहन चिंतन करना होगा।
जंगलों में अवैध कटान को रोका जाए
काश्तकार शेखर पांडे का कहना है कि जंगलों में अवैध कटान लगातार जारी है। वन विभाग का अब नियंत्रण काफी कम होने लगा है। इमारती लकड़ी और जलावनी लकड़ी के लिए लगातार हो रहे कटान के चलते वनों का क्षेत्रफल लगातार कम हो रहा है। जंगली जानवर अब हिंसक बन गए हैं। पयरवरण के लिए तो खतरा है ही अब मानव और जंगली जानवरों के बीच हिंसक वारदातें खतरे की घंटी से कम नहीं है।