देहरादून
GIS Master Plan में सामने आई मलिन बस्तियों की हकीकत, दून में 118 में से 78 सरकारी भूमि पर और हालत खराब
देहरादून: जीआइएस आधारित डिजिटल मास्टर प्लान के बूते वर्ष 2041 तक के लिए दून में सुनियोजित विकास का दंभ भरा जा रहा है। यह मास्टर प्लान एक तरफ भविष्य के दून के लिए बेहतरी की उम्मीद जगा रहा है तो दूसरी तरफ दून के मौजूदा स्याह पहलू से भी हमें रूबरू करा रहा है।
ऐसा ही एक पहलू है यहां की मलिन बस्तियां। इनकी स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 118 मलिन बस्तियों में से 78 सरकारी भूमि पर बसी हैं। इनमें भी 60 प्रतिशत की बसावट नदी-नालों की भूमि पर है।
वर्ष 2041 तक के जीआइएस मास्टर प्लान के मुताबिक मलिन बस्तियों में 30 हजार 500 घर हैं, जिनमें 1.57 लाख से अधिक की आबादी निवास करती है। मलिन बस्तियों में सर्वाधिक बसावट रिस्पना नदी क्षेत्र में है। बताया गया है कि यहां भवनों का निर्माण एक दूसरे से सटाकर किया गया है। साथ ही बस्तियों की सड़कें बेहद संकरी हैं।
दून भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदनशील है और किसी भी आपात स्थिति में ऐसे क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्य आसान नहीं होगा। इसके अलावा मानसून सीजन में भी नदी भूमि में बसावट वाले इस क्षेत्र को असुरक्षित बताया गया है। मानसून सीजन में खतरे की यही आशंका बिंदाल क्षेत्र की मलिन बस्तियों के प्रति भी जताई गई है।
शहर के प्रमुख हिस्सों में बस्तियों पर चिंता
मास्टर प्लान में 10 वार्डों में स्थित मलिन बस्तियों के प्रति खासी चिंता व्यक्त की गई है। ये बस्तियां शहर के प्रमुख हिस्सों के इर्द-गिर्द हैं, जहां आबादी का घनत्व पहले ही अधिक है।
शहर के प्रमुख हिस्सों वाले इन वार्डों में हैं मलिन बस्तियां
- वार्ड 11 (विजय कालोनी)
- वार्ड 24 (शिवाजी मार्ग)
- वार्ड 26 (धामावाला)
- वार्ड 27 (झंडा मोहल्ला)
- वार्ड 29 (डालनवाला पूर्वी)
- वार्ड 44 (पटेलनगर पश्चिमी)
- वार्ड 50 (राजीव नगर)
- वार्ड 57 (नेहरू कालोनी)
- वार्ड 74 (ब्रह्मपुरी)
- वार्ड 80 (रेस्ट कैंप)
मलिन बस्तियों के 63 प्रतिशत क्षेत्र में सीवर लाइन नहीं
मास्टर प्लान में दर्ज जानकारी के मुताबिक मलिन बस्तियों में अभी भी स्वच्छता और जल निकासी के इंतजाम पुख्ता नहीं हो पाए हैं। सिर्फ दो प्रतिशत मलिन बस्तियां ही सीवर लाइन से जुड़ी हैं। वहीं, 35 प्रतिशत बस्ती क्षेत्र आंशिक रूप से सीवर कनेक्शन वाले हैं। 63 प्रतिशत क्षेत्र ऐसा है, जहां सीवर लाइन नाम की चीज ही नहीं है।
53 प्रतिशत परिवारों के पास ही अपना शौचालय
मलिन बस्तियों में 53 प्रतिशत ही ऐसे परिवार हैं, जिनके पास अपना शौचालय है। 17 प्रतिशत परिवार साझे रूप में शौचालय का प्रयोग करते हैं और 21 प्रतिशत खुले में शौच को विवश हैं। दूसरी तरफ एक प्रतिशत ही परिवार सार्वजनिक शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं।
इसका बड़ा कारण यह भी पाया गया है कि इतने बड़े शहर में सिर्फ 77 ही सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध हैं। इसके अलावा 70 प्रतिशत के पास अपना बाथरूम है, जबकि 10 प्रतिशत खुले में स्नान करते हैं और सात प्रतिशत लोग सार्वजनिक स्नानागार का प्रयोग कर रहे हैं।
10 % क्षेत्र में ही जल निकासी, 35 % में कूड़ा एकत्रीकरण ठप
जल निकासी और कूड़ा प्रबंधन के मोर्चे पर भी मलिन बस्ती क्षेत्र उपेक्षित हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत क्षेत्र ही ऐसे हैं, जहां जल निकासी के पुख्ता इंतजाम हैं। 53 प्रतिशत क्षेत्र में यह व्यवस्था आंशिक है तो 36 प्रतिशत में कोई इंतजाम नहीं हैं।
इसी तरह 35 प्रतिशत क्षेत्र में कूड़ा प्रबंधन के इंतजाम अपर्याप्त हैं। क्योंकि, यहां कूड़ा उठान तक कि व्यवस्था नहीं है। जिन 75 प्रतिशत क्षेत्रों में कूड़ा उठान किया जा रहा है, वहां भी 61 प्रतिशत क्षेत्र में दैनिक व्यवस्था नहीं है। लिहाजा, इन क्षेत्रों का कूड़ा नदी-नालों में फेंका जा रहा है।
मास्टर प्लान में मलिन बस्ती सुधार के लिए की गई संस्तुति
- सभी के लिए आवास योजना के तहत आवासीय परियोजना तैयार की जाएं।
- उत्तराखंड स्लम रेगुलराइजेशन एंड रिहेबलिटेशन एक्ट (स्लम एक्ट 2016) के तहत सुधार के विभिन्न काम किए जाएं।
- स्लम रीलोकेशन किया जाए, विशेषकर रिस्पना व बिंदाल नदी के लोलाइन क्षेत्रों से मलिन बस्तियों को शिफ्ट किया जाए।
इन बस्तियों में खुले में शौच की प्रवृत्ति अधिक
बाल्मीकि बस्ती, शिवलोक अजबपुर, इंदिरा कालोनी, आजाद नगर