राजनीति
चुनाव में मसाण पूजन किसका, किसे चढ़े बकरी, किसे चढ़ी शराब!
मनोज लोहनी
मसाण किसे लगा? किसने पूजा? किसे चढ़ाया? क्या चढ़ाया? क्यों चढ़ाया? जिसने भी पूजा या पुजवाया, मौज तो मसाण भगाने वालों की थी। चचा बताते हैं, इस चुनाव में भी खूब मसाण पूजा गया। काहे के लिए लिए पूजा गया होगा मसाण? इतना पूजा गया मसाण कि बकरों की शामत, इतनी कि बकरों के भी लाले पड़ गए! खैर मेन सब्जेक्ट यह कि मसाण किसने पूजा…। बताते हैं कि नेताजी को वोट-वोट का जाप करना था। यह जाप हर पांच साल में लगता बताया जाता है। वह दिन-रात, उठते-जागते, नींद में भी वोट-वोट कहते देखे गए। किसी ने कहा, खाली वोट-वोट जपने से काम नहीं चलेगा। जो नेताजी के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है, उसके नाम का तो मसाण पूजना पड़ेगा। मसाण भई बहुत तगड़ा लगा है, ऐसे नहीं, मसाण तो लंबी मसाण पूजा के बाद ही उतरेगा। बस, खस्सी की उलटी गिनती शुरू। मसाण पूजन कार्यकर्ता नाम के गण करते हैं बल। लाल कपड़े में रखी तलवार टाइप दतई ने कब से गर्दन नहीं उड़ाई थी, बकरे की। बकरे का काम तमाम करने को उसे भी चुनाव ने मौका दे दिया। उसे पया-पयाकर इतना तीखा बनाया गया कि एक ही बार में बकरे की गर्दन साफ! नेताजी भी योजनाएं ऐसे ही पस्या देते हैं क्या, एक्की बार में? उसमें अभी टाइम है, अभी तो उन्हें वोट-वोट का जाप करना था, रात की मसाण पूजा अलग। फिर किसी ने राय दी, खाली सिरी, चाप, टक्कर से काम नहीं चलेगा, मसाण तभी जाएगा जब सुरा की छलबल भी होगी! रातों-रात यहां-वहां पता नहीं कहां-कहां मसाण पूजा हुई। हर तरफ शाम को आवाई, खच्च, बस एक्की बार में गर्दनें साफ। खटाक की आवाज के साथ बोतल खुली…जोर का मसाण पूजन हो रहा। वैसे मसाण तो भूत का पूजा जाता है…भूत जनता को नेताओं का लगता है, जब वह यहां-वहां डोइते रहते हैं, अपने काम के लिए। तो यह भूत नेताजी को क्यों लगा होगा? वोट का भूत ऐसा ही होता है कि चुनाव लडऩे वाला वोट-वोट ही करता रहता है। रिजल्ट के बाद क्या होगा? नेताजी के वोट का भूत तो उतर जाएगा, फिर देखा वह किसे और कैसे पस्याते हैं????
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