उत्तराखण्ड
कांग्रेस में और पेचीदा हुआ टिकटों का बंटवारा, हरीश रावत के निर्णायक भूमिका में आने से विरोधी हो रहे एकजुट
Uttarakhand Assembly Elections 2022 कांग्रेस में टिकटों की लड़ाई में जो जीतेगा, वहीं अगला सिकंदर बनेगा। चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से गुरेज किए जाने से अब टिकटों के बंटवारे के लिए गोलबंदी तेज होना तय है। पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत टिकट तय कराने में जिसतरह निर्णायक भूमिका में आए हैं, उससे उनके विरोधियों को भी एकजुट होने का मौका मिल गया है। ऐसे में टिकटों के बंटवारे का मामला पेचीदा होना तय है।
उत्तराखंड में अब तक माना जा रहा था कि टिकटों का बंटवारा अपेक्षाकृत सुगमता से हो सकेगा। पार्टी के मौजूदा विधायकों की संख्या कम है। ऐसे में सिटिंग गेटिंग के फार्मूले से उपजने वाली नाराजगी का असर बेहद सीमित रहना ही है। जिताऊ और टिकाऊ की टिकट पर दावेदारी को तरजीह देने के संकेत पार्टी हाईकमान के प्रतिनिधियों ने दिए। साथ ही आम राय से टिकट के लिए सहमति बनाने पर विशेष जोर दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के ट्वीट से पार्टी में मचे सियासी घमासान और उनकी नाराजगी दूर करने के बाद उपजे हालात में अब टिकटों को लेकर शायद ही आम सहमति से निर्णय हो पाए।
अंतिम दौर में है प्रत्याशियों का चयन
विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू करने की तारीख नजदीक आने के साथ ही कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे को लेकर उल्टी गिनती शुरू होने जा रही है। जिला कांग्रेस कमेटी दावेदारों के आवेदन बटोर चुकी हैं। उन्हें प्रदेश चुनाव समिति को भेजने की कवायद जारी है। इस बीच पूर्व राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडेय की अध्यक्षता में गठित स्क्रीनिंग कमेटी राज्य का पांच दिनी दौरा कर दावेदारों की वस्तुस्थिति के साथ ही राज्य के हालात का फीडबैक ले चुकी है। चालू वर्ष के अंतिम दिनों से लेकर नए साल के पहले पखवाड़े के भीतर प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होनी है।
टिकटों के बंटवारे पर होगी रार
हालिया सियासी घटनाक्रम और एक बार फिर मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से पार्टी हाईकमान के परहेज को देखते हुए टिकटों के बंटवारे पर रार तकरीबन तय मानी जा रही है। प्रत्याशियों के चयन में हरीश रावत का अपरहैंड न रहे, इसे लेकर विरोधी गुटों को लामबंद होने से रोकना अब शायद ही मुमकिन हो। टिकट देने की राह कतई आसान रहने वाली नहीं है। रस्साकसी में शायद ही कोई अपनी ओर से ढील देना चाहेगा। पार्टी को एक बार फिर इस मामले में जूझना पड़ सकता है।