राजनीति
राज्यसभा नहीं तो विधान परिषद ही सही, बिहार में एमएलसी की सात सीटों के लिए ऐसे सज रही है बाजी
राज्यसभा चुनाव के साथ बिहार में विधान परिषद चुनाव की सरगर्मी भी बढ़ गई है। इसे भी जुलाई में पूरा करना है। विधान परिषद में विधानसभा कोटे की सात सीटें रिक्त हो रही हैं। राज्यसभा से वंचित दावेदार विधान परिषद के लिए भाग-दौड़ करने लगे हैं। खाली होने वाली सभी सीटें राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की हैं। इनमें से पांच जदयू (जनता दल यूनाइटेड), एक भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) और एक वीआइपी (विकासशील इनसान पार्टी) के खाते में है। हालांकि, वीआइपी संस्थापक मुकेश सहनी भी अभी भाजपा कोटे से ही विधान पार्षद हैं।
इधर नहीं तो उधर ही सही
इन सभी सीटों का कार्यकाल 21 जुलाई को समाप्त हो रहा है। इससे पहले बिहार से छह सीटों के लिए राज्यसभा सदस्य का चुनाव संपन्न होना है। इसमें एक सीट पर किंग महेंद्र के निधन से उप चुनाव हो रहा है। वहीं, पांच सीटों पर राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल पूर्ण होने जा रहा है। ऐसे में राज्यसभा की रेस से वंचित होने वाले नेता अभी से विधान परिषद की सीट पर अपनी दावेदारी सुनिश्चित कर लेना चाह रहे हैं।
विधायक चुनते हैं 27 एमएलसी
बता दें कि 75 सदस्यीय बिहार विधान परिषद में वर्तमान में विधानसभा सदस्यों से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या 27 है। इसी 27 में से सात सीटें खाली हो रही हैं। इसके अलावा स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक के छह यानी 12, स्थानीय निकायों से निर्वाचित 24, राज्यपाल द्वारा मनोनीत विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्टता रखने वाले 12 सदस्य होते हैं।
31 विधायकों पर एक विधान पार्षद का होगा चुनाव
विधानसभा कोटे की सीट होने की वजह से इसमें मतदाता विधायक होते हैं। विधायकों की संख्या के हिसाब से दलों को सीटें मिलती हैं। अमूमन दल आपसी समझौते के तहत संख्या बल के हिसाब से सीटों का बंटवारा कर लेते हैं। मतदान की स्थिति नहीं बनती है। नियमानुसार 243 सदस्यीय विधानसभा में एक विधान पार्षद चुनने के लिए 31 विधायकों के मत की जरूरत पड़ेगी।
बिहार सहित छह राज्यों में ही विधान परिषद
अभी देश के छह राज्यों में ही विधान परिषद हैं। बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में विधान परिषद है। विधान परिषद में एक निश्चित संख्या तक सदस्य होते हैं। संविधान के तहत विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य विधान परिषद में नहीं होने चाहिए। गौरतलब है कि विधान पार्षद का दर्जा विधायक के ही समकक्ष होता है, मगर कार्यकाल एक वर्ष ज्यादा होता है। विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल छह वर्ष के लिए होता है। वहीं, विधानसभा सदस्य यानी विधायक का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है।
उच्च सदन में किसका हो रहा कार्यकाल पूरा
जदयू के कमर आलम, गुलाम रसूल, रणविजय कुमार सिंह, रोजीना नाजिश और सीपी सिन्हा। भाजपा के अर्जुन सहनी और वीआइपी के मुकेश सहनी का कार्यकाल 21 जुलाई को पूरा हो रहा है।
राजद को दो सीटें मिलनी तय, वामदल को भी उम्मीद
वर्तमान विधानसभा में सदस्य संख्या के हिसाब से भाजपा को सहयोगी की मदद से तीन सीट, राजद को दो, जदयू को एक और एक सीट वामदल को मिलने की उम्मीद है। हालांकि, कांग्रेस भी एक सीट पर दावेदारी कर रही है, लेकिन समीकरण के हिसाब से उसके लिए संभावना कम दिख रही है।

