उत्तराखण्ड
हरिद्वार में कुष्ठ आश्रम तोड़ने व कुष्ठ रोगियों हटाने के मामले में हाईकोर्ट गंभीर, डीएम से मांगा जवाब
नैनीताल : हाई कोर्ट नैनीताल ने हरिद्वार में गंगा किनारे व अन्य जगहों से कुष्ठ रोगियों को हटाए जाने के खिलाफ स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमुर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने जिलाधिकारी हरिद्वार से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।
कोर्ट ने जिलाधिकारी से यह भी पूछा है कि हरिद्वार जिले में कितने कुष्ठ रोग आश्रम और कितने कुष्ठ रोगी हैं, कितने पक्के व कितने कच्चे इनके आवास हैं, वर्तमान में चंडीघाट पर कितने आश्रम हैं, ये गंगा नदी से कितनी दूरी पर स्थित हैं, कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास की क्या व्यवस्था है,कितना बजट स्वीकृत किया गया। उनके रहन, सहन, स्वास्थ्य आदि की क्या व्यवस्था की गयी है। जिलाधिकारी को इन बिंदुओं पर शपथपत्र देने को कहा गया है। अगली सुनवाई को दो सप्ताह बाद की तिथि नियत की है।
देहरादून के एनजीओ वेलफेयर सोसाइटी ट्रस्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था। जिसमें कहा गया था कि सरकार ने पिछले दिनों गंगा नदी के किनारे व अन्य स्थानों से अतिक्रमण हटाने के दौरान यहां बसे कुष्ठ रोगियों को भी हटा दिया था। अब इनके पास न घर है, न रहने की कोई व्यवस्था।
भारी बारिश में कुष्ठ रोगी खुले में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। कोर्ट ने इस पत्र को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया था। पत्र में कहा गया कि 2018 में राष्ट्रपति के दौरे के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी ने चंडीघाट में स्थित गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के साथ साथ उनके अन्य आश्रमों को भी तोड़ दिया था, जिससे वे आश्रम विहीन हो गए।
आराेप है कि गंगा माता कुष्ठ रोग आश्रम के आस पास अन्य सात बड़े कुष्ठ रोग आश्रम भी हैं, जिन्हें नहीं तोड़ा गया क्योंकि ये उच्च राजनीतिक प्रभाव वाले व्यक्तियों के हैं। सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। जिसमें कहा गया है कि सरकार उनका पुनर्वास करे, उनको मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं और उनका खर्चा स्वयं वहन करें।

