उत्तराखण्ड
हरदा की बड़ी हुंकार: 10 मार्च से शुरू करूंगा नई पारी
उत्तराखंड के पूवज़् मुख्यमंत्री हरीश रावत को कांग्रेस हाईकमान ने भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है, मगर वह 10 माचज़् से नई पारी खेलने का ऐलान कर चुके हैं। आज सोशल साइट्स में मैं उन्होंने अपनी इच्छा फिर जाहिर कर दी है। हरीश रावत ने लिखा है-
मैं 10 माचज़्, 2022 को मतगणना के साथ एक नई पारी खेलने के लिए अपने को संकल्पित करना चाहूंगा। उस संकल्प के साथ लोगों को जोडऩे से पहले मैं पिछले 2 माह के कुछ प्रेरक प्रसंगों को आपके साथ साझा करना चाहूंगा, अत्यधिक विषम परिस्थितियों और साधन हीनता में 2 माह से कुछ ऊपर चुनाव अभियान का संचालन एक छोटा-मोटा करिश्मा ही तो है, उसको याद कर इन अवकाश के क्षणों में मन, मस्तिष्क और शरीर, तीनों में कंपन पैदा हो रही है। उस सब अभियान को संयोजित करना तो एक बड़ा का भी लिखना जैसा होगा, मगर कुछ अंशों को संकलित कर उन्हें आप तक पहुंचाने के लिए मैंने अपने सोशल मीडिया टीम के लोगों से कहा है कि कल वो एक प्तवीडियो जारी करेंगे। मगर इस वीडियो में कुछ ही हिस्सा है कुल कैंपेन का इसमें “तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा, हमने किया है आगे भी करके दिखाएंगे, लाओ-लाओ कांग्रेस की सरकार, बनाओ-बनाओ कांग्रेस की सरकार, गैस सिलेंडर नहीं होगा ₹500 के पार” जैसे अभियान सम्मिलित नहीं हैं। इन अभियानों पर एक श्रंखला यदि मुझे कभी फुसज़्त मिली पुन: जारी करूंगा। उस श्रृंखला में मैं अपने उन दोस्तों का जिन्होंने मांगे हुए कंप्यूटरों, लैपटॉप व अपने मोबाइलों से एक अद्भुत सोशल मीडिया अभियान को संचालित किया और आज के वातावरण जो कांग्रेस के पक्ष में दिखाई दे रहा है उसको बनाने में महती भूमिका अदा की उनके चित्र भी आपके साथ साझा करूंगा।
मैं आपके साथ 7 माचज़् को एक दूसरा वीडियो साझा करूंगा। जिसमें उन प्तकंठस्वरों जिनमें मेरी छोटी बहन माया उपाध्याय से लेकर मेरे दोस्त कैलाश खेर, दिलबाग मोर जैसी सुप्रसिद्ध हस्तियां भी हैं तो कुछ मेरे वो जोशीले साथी भी हैं, जिन्होंने अपने कंठ स्वर देकर कुछ ऐसे प्रेरणादायक गीत गाए हैं, जिनको मैं बहुत बाहर तो प्रचारित नहीं कर पाया, लेकिन कभी थका हुआ मन और शरीर को शांति देने के लिए मैं रात के एकांत में जरूर सुनता था, मैं उन गीतों को भी आपके साथ साझा करना चाहूंगा। 10 माचज़् के बाद अभी मैंने आपसे कहा कि एक नये उद्भव की सोच मेरे मन में आ रही है, तो उस उद्भव की सोच से पहले मैं उस प्तहरीशरावत को भी याद करना चाहूंगा, जिसने अपने बचपन को अपने पिता और माँ की गोद में बिताया और वहां से लेकर आज के हरीश रावत बनने तक की जो यात्रा सिरमोली, चौनलिया, देवलीखेत, रामनगर होकर फिर जिंदगी की बड़ी छलांग के लिए लखनऊ पहुंची, मैं उसके भी कुछ अंशों को स्मृतिवध करना चाहता हूं और उस अंश को मैं 9 माचज़् को आप सबसे साझा करना चाहूंगा।
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