राजनीति
हल्द्वानी विधानसभा: सवाल यह है कि एक-दूसरे के घर सेंध कौन लगाएगा?
मनोज लोहनी
राÓय की हॉट सीट यानी हल्द्वानी विधानसभा, जिसका जिक्र आते ही अब तक दिवंगत डॉ. इंदिरा हृदयेश, वर्तमान में कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत का जिक्र आता है। इस भारी भरकम विधानसभा का इतिहास मूल रूप से कांग्रेसी ही रहा है। मगर राÓय बनने के बाद से इस पर दिवंगत डॉ. इंदिरा हृदयेश का ही कब्जा रहा। 2007 के चुनावों में जरूर हल्द्वानी विधानसभा की सीट भाजपा के खाते में गई जब यहां से वर्तमान कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत विजयी रहे। हल्द्वानी विधानसभा सीट पर मतदाताओं की जो बसासत है, उसमें यह साफ है कि यहां भाजपा, कांग्रेस काडर वोट के साथ ही जाति और धर्म आधारित राजनीति भी पूरी तरह हावी है। काडर वोट अपनी जगह पर है, इसके साथ ही वर्तमान में भाजपा-कांग्रेस के अपने-अपने गढ़ हैं। इसके अलावा प्रत्याशियों की अपनी व्यक्तिगत छवि के आधार पर भी उनका वोट बैंक है। वर्तमान में यहां कांग्रेस के सुमित हृदयेश, भाजपा से मेयर डॉ. जोगेंद्र सिंह रौतेला और सपा के टिकट के शुएब अहमद चुनाव मैदान में हैं। हल्द्वानी की राजनीति इस बात की गवाह रही है कि अल्पसंख्यक वोटों पर यहां की राजनीति काफी हद तक निर्णायक सिद्ध होती रही है। चुनाव फिर चाहे मेयर का हो अथवा विधायिकी का। हल्द्वानी मुख्य शहर के अलावा वनभूलपुरा से लाइन नंबर 17 तक इलाके में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी Óयादा है जो कि असल में कांग्रेस का ही वोट बैंक है। मगर यहां सपा, बसपा और अन्य दलों से खड़े होने वाले प्रत्याशियों पर भी काफी दारोमदार रहता है कि वह कितने वोट लाते हैं और उससे किसे कितना नुकसान होता है। जैसा कि मेयर के चुनाव में हुआ, तब भी यहां मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही था, मगर समाजवादी पार्टी के शुएब अहमद ने करीब 9 हजार वोट लाकर एक तरह से कांग्रेस के वोट बैंक में ही सीधी सेंध लगा दी थी। इस बार गणित फिर जोगेंद्र बनाम सुमित तो है ही, शुएब अहमद फिर सपा के टिकट से पूरी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा-कांग्रेस के वोटों का संतुलन सपा के इस वोट पर निर्भर करता है। यानी सपा के वोट से कांग्रेस को नुकसान, जिसकी भरपाई कांग्रेस को शहर से करनी होती है। यही दस हजार का वोट जब कांग्रेस-भाजपा से अलग हटता है तो दोनों ही पार्टी करीब-करीब बराबरी पर आ जाती हैं और दोनों में हार-जात का अंतर भी कम हो जाता है। यहीं से यह बात शुरू होती है कि अब कांग्रेस, भाजपा के गढ़ में यानी इनके घरों में विरोधी कितनी सेंध लगा पाता है जो कि इस बार दिखने को मिल रहा है।
भाजपा के अपने गढ़ हैं तो कांग्रेस की अपनी जमीन। वनभूलपुरा, राजपुरा, आवास-विकास, दमुवाढूंगा, वैलेजली लॉज बमौरी आदि इलाके ऐसे हैं जहां कांग्रेस की जमीन हर बार मजबूत रही, दूसरी ओर शहरी क्षेत्र के साथ ही तमाम ग्रामीण इलाकों भाजपा की स्थिति काफी मजबूत मानी जाती है। भाजपा-कांग्रेस के इन गढ़ों में दोनों ही पार्टी का काडर वोट काफी जरूरी फैक्टर है। इसके अलावा अब जो वोट बचता है उस पर किस पार्टी का कब्जा होता है, यही भाजपा-कांग्रेस में जीत के लिए निर्णायक भूमिका अदा करता है। अपनी वोट पक्की, मगर दूसरे के वोट को कुछ हद तक अपनी तरफ खींचना, यही तथ्य यहां काफी निर्णायक सिद्ध हो जाता है। मुस्लिम वोट हालांकि कांग्रेस के पक्ष में होते हुई भी सपा से मुस्लिम प्रत्याशी का खड़ा हो जाना कांग्रेस का गणित खराब करता है यह तो तय है, मगर यह वोट कभी भी निर्णायक सिद्ध नहीं हो सका है। लिहाजा अब देखना यह है कि कांग्रेस-भाजपा एक दूसरे के घरों में कितनी सेंध लगा पाते हैं।