उत्तराखण्ड
लावारिस शव अब आएंगे एमबीबीएस की पढ़ाई के काम,नियमावली बनाने की तैयारी में सरकार
देहरादून। प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस छात्रों की पढ़ाई के लिए अब लावारिस शव काम आएंगे। इसके लिए सरकार नियमावली बनाने पर विचार कर रही है। जल्द ही इस संबंध में पुलिस, गृह, चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक आयोजित की जाएगी।
प्रदेश में चार राजकीय मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं। इसमें देहरादून, हल्द्वानी, श्रीनगर और अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में चार सौ से अधिक छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन एमबीबीएस छात्रों को मानव शरीर की संरचना का अध्ययन के लिए पार्थिक देह की कमी है।
वर्तमान में मेडिकल कॉलेजों के पास 5 से 6 पार्थिक देह है जबकि मेडिकल शिक्षा ग्रहण कर रहे प्रत्येक 10 छात्रों के लिए एक पार्थिक देह (कैडेवर) की आवश्यकता होती है।मेडिकल कॉलेजों में पार्थिक देह की कमी को दूर करने के लिए सरकार लावारिस शव उपलब्ध कराने के लिए नियमावली बना रही है। सरकार की यह पहल कामयाबी होती है तो मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के अध्ययन के लिए कैडेवर की समस्या नहीं रहेगी।
उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ धनसिंह रावत का कहना है कि विशेषज्ञों के मुताबिक मेडिकल कॉलेजों में मृत देह को सम्मान के साथ सुरक्षित रखा जाता है। शोध एवं अध्ययन कार्य शुरू करने से पहले मेडिकल छात्र-छात्राएं व फैकल्टी पार्थिव शरीर के समक्ष एक विशेष शपथ लेने के उपरांत ही सम्मान के साथ प्रयोगात्मक कार्य शुरू करते हैं।
लावारिस शव को मेडिकल की पढ़ाई के लिए उपलब्ध कराने के लिए नियमावली बनाई जाएगी। इसके लिए जल्द ही पुलिस, गृह और विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की जाएगी।
बरामद लावारिस शव का पुलिस तत्काल पोस्टमार्टम कर देती है। जिसके बाद मृतक के वारिस का आने का इंतजार किया जाता है। जब वारिस नहीं आता है तो शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। अब सरकार का प्रयास है कि नियमावली बनाकर ऐसे नियम बनाए जाएं कि पुलिस लावारिस शव को बिना पोस्टमार्टम के रखे। यदि मृतक के वारिश नहीं आते है तो शव मेडिकल कॉलेजों को सौंपा जाए।