Connect with us

अजब-गजब

विश्व का सबसे बड़ा सांप होने की दावेदारी और गुजरात के कोयले की खदान में मिला सर्प का जीवाश्म

खबर शेयर करें -

डॉ. अरविन्द मिश्रा

भारतीय सर्पविदों ने गुजरात के एक कोयले के खदान से ऐसे सांप का जीवाश्म खोज निकाला है जो विश्व में अब तक के सबसे बड़े सांप होने की दावेदारी में आ गया है। इसका वैज्ञानिक नाम भी पुराकथाओं के वासुकि सर्प पर रखा गया है जो शिव जी के गले का हार है और जिसके बारे में कहा गया है कि समुद्र मंथन के वक्त मंदराचल पर्वत को मथानी बनाने के लिये वासुकि को ही रस्सी के रुप में इस्तेमाल किया गया था।

श्रीकृष्ण ने भी कहा है कि, “सर्पाणामस्मि वासुकिः।(श्रीमद्भगवद्गीता 10.28)।जाहिर है कि हमारी लोकस्मृति में ऐसे ही विशाल सांपों की छवि रची बसी हुई है जो कभी भारत भूमि पर विचरण करते थे। और इसलिये ही अनेक पुराकथाओं में उनका उल्लेख हुआ है। शोधकर्ताओं ने अभी पिछले हफ्ते ही पता लगाया कि भारत में यह प्राचीन बड़ा साँप एक टन वजन का रहा होगा जो एक स्कूल बस से भी लंबा रहा होगा । कोयला खदान के पास मिले जीवाश्मों के अनुसार इसकी लंबाई 36 फीट (11 मीटर) से लेकर 50 फीट (15 मीटर) तक है । यह सबसे बड़े ज्ञात उस साँप के समान है, जो मूल रूप से कोलंबिया में पाया गया था और लगभग 42 फीट (13 मीटर) लंबा था। यानि वासुकि से लंबाई में कम।कथित वासुकि भारतीय धरती पर यही कोई 4.7 करोड़ वर्ष पहले विचरता था। वैज्ञानिकों ने उचित ही इसका नामकरण वासुकि इंडिकस किया है। इसकी रीढ़ की हड्डी से पता चलता है कि यह 15 मीटर तक लंबा हो रहा होगा। हालाँकि इसकी केवल कुछ रीढ़ की हड्डी ही बरामद की गई थी, लेकिन शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह निश्चय ही 15 मीटर तक लंबा रहा होगा।

वर्ष 2005 में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के सुनील बाजपेयी सहित जीवाश्म विज्ञानी पश्चिमी भारत के गुजरात में एक कोयला खदान में जीवाश्मों की खोज कर रहे थे। बाजपेयी कहते हैं, “हम वास्तव में इस इलाके में शुरुआती व्हेल के जीवाश्मों की खोज कर रहे थे, लेकिन हमें न केवल व्हेल बल्कि साँपों सहित कई अन्य कशेरुकी जीवाश्म मिले।” खोजे गये जीवाश्मों में 27 कशेरुकाओं का एक संग्रह था, जिनकी लंबाई 6 सेंटीमीटर और चौड़ाई 11 सेंटीमीटर थी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के देबाजी दत्ता कहते हैं कि उनके बड़े आकार और इस तथ्य के कारण कि उनकी शारीरिक रचना कुछ हद तक खदान की तलछट से अस्पष्ट थी, पहले माना जाता था कि ये किसी प्रकार के विलुप्त मगरमच्छ के हैं। किंतु करीब से विश्लेषण करने के बाद, दत्ता और बाजपेयी अब मानते हैं कि कशेरुकाएं मैड्सोइडे नामक एक विलुप्त परिवार के एक बहुत बड़े सांप की ही है।

अब विलुप्त हो गयी एक अन्य प्रजाति टाइटेनोबोआ सेरेजोनेंसिस से इसकी कशेरुकाएं थोड़ी बड़ी हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह संभवतः एक घात लगाने वाला शिकारी रहा होगा जो स्थलीय या अर्ध-जलीय वातावरण में रहता था, जैसे कि दलदलों में। आज के कई बड़ी प्रजातियों के अजगरों की लंबाई भी 15 फीट पाई जाती है। आधुनिक समय के साँपों के डेटा का उपयोग करते हुए, जो उनके कशेरुकाओं के आकार की तुलना समग्र लंबाई से करते हैं, दत्ता और बाजपेयी का अनुमान है कि वासुकि इंडिकस 10.9 से 15.2 मीटर के बीच था।हालांकि यह संभावित रूप से टाइटेनोबोआ से अधिक लंबा है, लेकिन शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि हमारे पास किसी भी मैड्सोईड साँप का पूरा कंकाल नहीं है, इसलिए यह जानना असंभव है कि उनकी लंबाई और कशेरुकाओं का आकार जीवित प्रजातियों के समान ही सहसंबंधित होगा या नहीं।न्यूयॉर्क के रोचेस्टर में नाज़रेथ विश्वविद्यालय में जैकब मैककार्टनी कहते हैं, “जब भी आप उपलब्ध डेटा सेट से परे अनुमान लगा रहे हों, तो हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए।” “लेकिन इस नई प्रजाति की कशेरुकाएं अपेक्षाकृत बहुत बड़ी हैं। चलिये, भारत ने दीगर मामलों के अलावा अब सांपों के मामले में भी अपना सिक्का दुनिया में जमा दिया है।#वासुकिइंडिकस

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

More in अजब-गजब

Advertisiment

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page