उत्तराखण्ड
पहली बार टिकट को तरसे हरक सिंह, चौबट्टाखाल से भी नहीं मिला मौका; गवाह बनने जा रही पांचवीं विधानसभा
देहरादून। Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 पूर्व मंत्री हरक सिंह बेटिकट ही रह गए। उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा का चुनाव इस बात का गवाह बनने जा रहा है कि चुनावी राजनीति का यह दमदार चेहरा पहली बार अपने ही टिकट के लिए तरसा और चुनाव मैदान से बाहर बैठने को मजबूर हो गया। कांग्रेस में वापसी के बाद हरक सिंह ने कई विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रभाव का हवाला देकर यह संकेत देने की कोशिश भी की कि वह गढ़वाल की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने को तैयार हैं। कांग्रेस ने वादे के अनुसार उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं को तो टिकट थमाया, लेकिन उससे ज्यादा भरोसा नहीं किया। वहीं, हरक सिंह रावत ने कहा कि इस बार मेरी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी।
भाजपा में तीन टिकट के लिए खम ठोकते रहे हरक सिंह रावत कांग्रेस में लौट तो गए, लेकिन ज्यादा टिकट की उनकी इच्छा अधूरी ही रही। तीसरी और अंतिम सूची बुधवार को जारी होने के साथ यह भी स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस में भी हरक को खुलकर खेलने का मौका नहीं मिलेगा। बीती 12 जनवरी की देर शाम हरक सिंह के दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस में जाने की भनक लगते ही भाजपा ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ ही पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था। भाजपा ने हरक और उनके बहाने पार्टी में अन्य को जो संदेश देने में देर नहीं लगाई।
तीसरी सूची में भी नहीं मिली जगह
वहीं कांग्रेस के दर पर पहुंचकर वापसी के लिए हरक को छह दिन का लंबा इंतजार करना पड़ा। 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार से बगावत करने वाले हरक सिंह को वापसी के लिए मौखिक और लिखित माफी मांगनी पड़ी। इसके बाद माना जा रहा था कि पार्टी चुनावी राजनीति में हरक की महारत का लाभ उठाएगी। प्रत्याशियों की दूसरी सूची में हरक को तो नहीं, लेकिन उनकी पुत्रवधू को लैंसडौन से टिकट दे दिया गया। इसके बाद उन्हें चौबट्टाखाल या डोईवाला से टिकट देने के कयास लगाए जा रहे थे। तीसरी व अंतिम सूची सामने आने के बाद ये कयासबाजी भी खत्म हो गई।
इस बार चुनाव लड़ाने तक भूमिका सीमित
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है, जब हरक स्वयं चुनाव से दूर रहेंगे। उनकी भूमिका अब चुनाव लड़ाने तक सीमित रहना तय समझा जा रहा है। उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2002 में हुए राज्य विधानसभा के पहले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट से जीत दर्ज की थी। तब नारायण दत्त तिवारी सरकार में उन्हें मंत्री पद मिला, लेकिन बहुचर्चित जैनी प्रकरण के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2007 में वह दोबारा लैंसडौन सीट से विजयी रहे और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे।
एंटी इनकंबेंसी पर हरक का दांव
हरक ङ्क्षसह को बार-बार सीट बदलने की वजह से भी जाना जाता है। पांच साल की एंटी इनकंबेंसी से पार पाने के लिए उनका यह दांव अब तक बहुत कारगर रहा है। वर्ष 2012 के चुनाव में हरक ने सीट बदलते हुए रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2016 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद हरक ङ्क्षसह कांग्रेस के नौ अन्य विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें कोटद्वार सीट से मौका दिया और उन्होंने विजय प्राप्त की थी।
1991 में पौड़ी से पहली बार दर्ज की जीत
वर्ष 1984 में पहली बार वह भाजपा के टिकट पर पौड़ी सीट से चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। इसके बाद वर्ष 1991 में उन्होंने पौड़ी सीट पर जीत दर्ज की थी। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार में उन्हें पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया था। हरक को वर्ष 1993 में भाजपा ने एक बार फिर पौड़ी सीट से अवसर दिया और वह फिर से जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे। वर्ष 1998 में टिकट न मिलने से नाराज हुए हरक ने भाजपा का साथ छोड़ते हुए बसपा की सदस्यता ग्रहण की।