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फिनलैंड-स्वीडन के NATO में शामिल होते ही ‘हार’ जाएगा रूस, पुतिन ने कैसे लिखी शिकस्त की कहानी?

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रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे यूरोप में तनाव पसरा हुआ है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि एक-दो देशों को छोड़कर पूरा का पूरा यूरोप रूस के खिलाफ हो चुका है। इस बीच फिनलैंड और स्वीडन ने नाटो में शामिल होने का ऐलान कर रूस की टेंशन और ज्यादा बढ़ा दी है। फिनलैंड के राष्ट्रपति सौली निनिस्टो ने खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन कर नाटो में शामिल होने की जानकारी दी थी। ऐसा माना जा रहा है कि स्वीडन भी जल्द ही नाटो में शामिल होने का औपचारिक ऐलान कर सकता है। ऐसे में स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होते ही रूस की घेराबंदी और कड़ी हो जाएगी। नाटो सेना रूस और फिनलैंड की 1340 किलोमीटर की लंबी सीमा के नजदीक आ सकती है। इन दोनों देशों की सीमा ठंडी झीलों और देवदार के जंगलो से घिरी हुई है। उधर, पोलैंड के नाटो में शामिल होते ही रूसी नौसेना के उत्तरी फ्लीट का मुख्यालय और बाल्टिक सागर का सैन्य अड्डा कलिनिनग्राद खतरे में आ सकता है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पूरे यूरोप में तनाव पसरा हुआ है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि एक-दो देशों को छोड़कर पूरा का पूरा यूरोप रूस के खिलाफ हो चुका है। इस बीच फिनलैंड और स्वीडन ने नाटो में शामिल होने का ऐलान कर रूस की टेंशन और ज्यादा बढ़ा दी है। फिनलैंड के राष्ट्रपति सौली निनिस्टो ने खुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फोन कर नाटो में शामिल होने की जानकारी दी थी। ऐसा माना जा रहा है कि स्वीडन भी जल्द ही नाटो में शामिल होने का औपचारिक ऐलान कर सकता है। ऐसे में स्वीडन और फिनलैंड के नाटो में शामिल होते ही रूस की घेराबंदी और कड़ी हो जाएगी। नाटो सेना रूस और फिनलैंड की 1340 किलोमीटर की लंबी सीमा के नजदीक आ सकती है। इन दोनों देशों की सीमा ठंडी झीलों और देवदार के जंगलो से घिरी हुई है। उधर, पोलैंड के नाटो में शामिल होते ही रूसी नौसेना के उत्तरी फ्लीट का मुख्यालय और बाल्टिक सागर का सैन्य अड्डा कलिनिनग्राद खतरे में आ सकता है।

पुतिन की हार का प्रतीक है फिनलैंड-स्वीडन की नाटो सदस्यता

रूसी राष्ट्रपति के विरोधी और विपक्ष के नेता रहे सर्गेई बिज़िउकिन ने कहा कि यह दो मोर्चों पर पुतिन की हार का प्रतीक है। बिज़िउकिन 2019 में पुतिन के डर से रूस छोड़कर विदेश भाग गए थे। कुछ साल पहले तक कई सैन्य और कूटनीतिक विशेषज्ञ नाटो को शीत युद्ध का अवशेष बता रहे थे, अब वही लोग नाटो की बड़ाई करते नहीं थक रहे हैं। पुतिन के दोस्तों में शुमार हंगरी और सर्बिया के अलावा लगभग सभी प्रमुख यूरोपीय देश रूस को खतरे के तौर पर देख रहे हैं। यही कारण है कि ऐतिहासिक रूप से शीत युद्ध के जमाने से ही तटस्थता बनाए रखने वाले फिनलैंड और स्वीडन ने भी अब नाटो में शामिल होने की इच्छा जताई है। रूस में, यहां तक कि क्रेमलिन समर्थक सबसे वाक्पटु लोगों के लिए देश के लोगों को यह समझाना मुश्किल हो रहा है कि कैसे पूरा यूरोप रूस के खिलाफ इकट्ठा हो रहा है।

पुतिन के वादों पर खत्म हुआ पड़ोसी देशों का भरोसा

नॉर्वेजियन हेलसिंकी कमेटी के एक वरिष्ठ नीति सलाहकार इवर डेल ने अल जजीरा से कहा कि फिनलैंड और स्वीडन दोनों देश बस एक पुराने दुश्मन से खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, पुतिन के सभी आश्वासन बेकार हैं। व्यवस्थित झूठ बोलना शायद कुछ समय के लिए एक रणनीति के रूप में उपयोगी था, लेकिन यह हमेशा काम नहीं आता है। इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की स्थिति को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। पुतिन 24 फरवरी के पहले अपने हर भाषण में ये दावा करते थे कि यूक्रेन पर आक्रमण की कोई योजना नहीं है, लेकिन उन्होंने इस दिन अचानकर हमले का ऐलान कर दिया। ऐसे में पुतिन के इस बयान कि फिनलैंड और स्वीडन को यह कहना कि उन्हें रूस से कोई खतरा नहीं है, इस पर दोनों देश विश्वास नहीं कर रहे हैं।

कभी रूस के अधीन हुआ करता था फिनलैंड

तीन शताब्दी पहले पीटर द ग्रेट सम्राट बनने वाले पहले रूसी जार बने। उन्होंने स्वीडन के खिलाफ 21 साल के लंबे युद्ध में विनाशकारी जीत हासिल की थी। जीत ने रूस को एक पूर्ण यूरोपीय शक्ति बना दिया। पीटर ने दलदली बाल्टिक तट पर अपनी नई राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग का निर्माण किया। तब से स्टॉकहोम ने एक भी युद्ध नहीं लड़ा है और मुख्य रूप से किसी भी सैन्य और राजनयिक गठबंधन से बाहर रहा है। इसी के एक सदी बाद रूस ने स्वीडन से फिनलैंड को छीनकर अपना कब्जा जमा लिया था। 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद फिनलैंड अलग हो गया। लेकिन सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने 1939 में फिनलैंड पर कब्जे के लिए दोबारा आक्रमण कर दिया। इस कारण भीषण ठंड में दोनों देशों ने करीब एक साल तक युद्ध लड़ा। कम्युनिस्ट मॉस्को के लिए यह युद्ध अप्रत्याशित रूप से इतना विनाशकारी था कि इसने 1941 में नाजी नेता एडॉल्फ हिटलर के यूएसएसआर पर आक्रमण का मार्ग प्रशस्त करने में मदद की।

नाटो के लिए नए सहयोगी नहीं हैं स्वीडन और फिनलैंड

शीत युद्ध के दौरान स्वीडन और फिनलैंड ने रूसी आक्रमकता को देखते हुए खुद को अलग थलग रखा। उस समय इन दोनों देशों के सामने नाटो में शामिल होने के कई प्रस्ताव आए, इसके बावजूद ये दोनों देश गुटनिरपेक्ष बने रहे। हालांकि, स्वीडन और फिनलैंड नाटो के लिए नए नहीं होंगे। ये दोनों देश यूरोपीय संघ और शांति सेना में नाटो के भागीदार हैं। 2014 में रूस के क्रीमिया पर आक्रमण कर कब्जा करने के बाद न्होंने नाटो के साथ अपना सहयोग मजबूत किया। अब जब रूस और यूक्रेन पिछले 83 दिनों से युद्ध लड़ रहे हैं, तो इन्होंने नाटो की पूर्ण सदस्यता के लिए आवेदन करने का फैसला किया है। दोनों देश सदस्यता को एक नए युग की शुरुआत के रूप में देख रहे हैं।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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