Connect with us

धर्म-संस्कृति

Famous Temple in Rishikesh: यहां कंठ में विष धारण कर नीलकंठ कहलाए भगवान शिव, दर्शन मात्र से पूर्ण होती है मनोकामनाएं

खबर शेयर करें -

ऋषिकेश : ऋषिकेश से 26 किमी की दूरी पर पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लाक में समुद्रतल से करीब 5500 फीट की ऊंचाई पर भगवान शिव का अलौकिक धाम नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। यह मंदिर मणिकूट पर्वत की तलहटी में मधुमति और पंकजा नदी के संगम पर है। नीलकंठ मंदिर में दर्शन के लिए यूं तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन श्रावण मास में यहां सबसे अधिक संख्या में शिव भक्त कांवड़ लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं।

नीलकंठ मंदिर का महत्व

मान्यता है कि देवासुर संग्राम के बाद हुए समुद्र मंथन में जब कालकूट नाम हलाहल विष निकला तो इस विष के प्रभाव से सभी प्राणी व्याकुल हो गए। तब भगवान शिव ने जगत कल्याण के लिए इस कालकूट नामक हलाहल विष को पीकर अपने कंठ में धारण कर लिया था।

इस विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां पर 60 हजार वर्षों तक समाधिस्थ रहकर विष की उष्णता को शांत किया था। भगवान शिव जिस वट वृक्ष के मूल में समाधिस्थ हुए उसी स्थान पर अब भगवान शिव स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। आज भी मंदिर में स्थित शिवलिंग पर नीला निशान दिखाई देता है।

यह है मंदिर की विशेषता

नीलकंठ महादेव मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है। अत्यंत मनोहारी मंदिर के शिखर के तल पर समुद्र मंथन के दृश्य को चित्रित किया गया है। मंदिर के गर्भ गृह के प्रवेश-द्वार पर एक विशाल पेंटिंग में भगवान शिव को विषपान करते हुए भी दिखलाया गया है।

नीलकंठ मंदिर से कुछ दूर पहाड़ी पर भगवान शिव की पत्नी पार्वती का मंदिर भी स्थित है। मंदिर के निकट ही मधुमति व पंकजा दो नदियां बहती हैं। शिवभक्त इन नदियों के जल से स्नान करने के बाद मंदिर में दर्शन करते हैं।

महंत सुभाष पुरी (महाराज, नीलकंठ महादेव मंदिर) का कहना है कि भगवान शिव अपने भक्तों के प्रति सबसे उदार रहते हैं। नीलकंठ धाम भगवान शिव के प्रिय धामों में एक है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं भगवान पूर्ण करते हैं। यही वजह है कि दूर-दराज से भक्त यहां जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं।

शिवानंद गिरी (मुख्य पुजारी, नीलकंठ महादेव मंदिर) का कहना है कि नीलकंठ महादेव मंदिर में पूरे वर्ष भर श्रद्धालु दर्शन के लिए आ सकते हैं। यहां मोटर मार्ग से मंदिर के निकट तक पहुंचा जा सकता है। जबकि स्वर्गाश्रम से नीलकंठ मंदिर तक के लिए पैदल मार्ग भी है। श्रावण मास में बड़ी संख्या में कांवड़ यात्री पैदल मार्ग से ही नीलकंठ धाम पहुंचते हैं। भगवान भोलेनाथ सभी की मनोकामना पूर्ण करें।

ऐसे पहुंचे मंदिर तक

  • ऋषिकेश तक आप ट्रेन और बस से पहुंच सकते हैं। वहीं, हवाई जहाज से देहरादून स्थित एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी 18 किमी है।
  • ऋषिकेश से चार किमी की दूरी पर स्थित रामझूला तक आप आटो से जा सकते हैं, जिसका किराया 10 रुपये है। इसके बाद रामझूला पुल को पार करते हुए स्‍वार्गाश्रम होते हुए 12 किमी की पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
  • आप स्‍वार्गाश्रम से टैक्‍सी से भी मंदिर तक सीधे पहुंच सकते हैं। जिसका किराया 50 रुपये है।
Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in धर्म-संस्कृति

Advertisiment

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page