उत्तराखण्ड
जिला सहकारी बैंक की चतुर्थ श्रेणी भर्ती घोटाला, कहीं लीपापोती में तो नहीं हुई जांच में देरी
देहरादून: जिला सहकारी बैंक की चतुर्थ श्रेणी भर्ती घोटाले की जांच को पूरा होने में ढाई महीने का समय लग गया। इससे बैंक कर्मचारियों में दबी जुबान चर्चा तेज है कि कहीं जांच रिपोर्ट में लीपापोती करने के चलते तो यह देरी नहीं हुई है। बैंक भर्ती में शुरुआत में सामने आया था कि कई उच्च अधिकारियों व विधायकों ने अपने रिश्तेदारों को भर्ती कराया है।
जिला सहकारी बैंकों में 423 पदों पर दिसंबर 2020 से भर्ती गतिमान है। भर्ती प्रक्रिया में प्रदेश भर में कई जिलों से भ्रष्टाचार की सूचनाए सामने आई। जिस कारण दो बार हरिद्वार जिले में भर्ती प्रक्रिया रोकी गई।
इसके बाद शिकायतों के अंबार के बाद सहकारिता सचिव ने 29 मार्च को देहरादून, पिथौरागढ़ व नैनीताल जिले की भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए जांच के आदेश दिए। जिसके बाद एक अप्रैल को जांच उप निबंधक नीरज बेलवाल की अध्यक्षता में तीन सदस्य कमेटी गठित कर दी गई।
कमेटी ने अगले दिन से ही जांच शुरु कर दी। लेकिन लगभग ढाई महीने से अधिक समय बीतने के बाद जांच रिपोर्ट अभी तक भी शासन को नहीं सौंपी गई। इससे कर्मचारियों में चर्चा है कि जांच को ठंडे बस्ते में भेजने के लिए लीपापोती की जा रही है।
इसलिए ही जांच में देरी हो रही है। जांच कमेटी में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि जांच लगभग पूरी हो चुकी है। जल्द शासन को भेजी जाएगी।
प्वाइंटर में दी जाएगी जांच रिपोर्ट
जिला सहकारी बैंक की चतुर्थ श्रेणी भर्ती की जांच रिपोर्ट शासन को प्वाइंटर में तैयार की दी जाएगी। जांच रिपोर्ट में प्रत्येक आरोप व उसकी जांच के साक्ष्य के साथ पूरी लिस्ट बनाकर दी जाएगी।
तीनों जिलों की बारीकी से जांच के चलते जांच टीम को रिपोर्ट तैयार करने में समय लगा है। अगर शासन स्तर पर जांच का रुख मोड़ने का प्रयास नहीं हुआ तो इसमें कई बड़े नामों पर कार्रवाई हो सकती है।
बैंक कर्मियों को आशंका कि दवा दी जाएगी जांच
जिला सहकारी बैंक के कर्मचारियों व भर्ती प्रक्रिया की शिकायत करने वाले अभ्यर्थियों को आशंका है कि यह जांच दवा दी जाएगी। सचिव के 15 दिनों में जांच रिपोर्ट शासन को सौंपने के निर्देश के बाद भी ढाई महीने बाद भी जांच रिपोर्ट नहीं सौपे जाने और इसी बीच सहकारिता सचिव समेत अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारियों के बदलाव भी किए गए हैं।
ऐसे में यह व्यतीत हो रहा है कि उच्च स्तरीय व्यक्तियों के जांच में लिप्त होने की आशंका पर इस जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

