Connect with us

उत्तर प्रदेश

डैनिश शराब… दल बदल और सचिवालय के चौथे तल पर ख़ास सहयोगी, हरदा के मन की बात और लम्बा चौड़ा वक्तव्य

खबर शेयर करें -

सार्वजनिक जीवन में बहुत सारे गुदगुदाने और चुभने वाले सवाल भी पूछे जाते हैं! मैंने अपने पिछले लेख में दो चुभते हुए सवालों को आपके साथ साझा किया था। ऐसे तीन और चुभते सवाल जो मुझसे आज भी किए जाते हैं, उन्हें आपके साथ साझा कर रहा हूं। लोग बहुधा व्यंगात्मक रूप से मुझसे कहते हैं कि साहब डैनिश…..!! भाजपा के मित्रों को जब कभी मेरी बात पसंद नहीं आती है, डैनिश-डैनिश, डैनिश का जाप करने लगते हैं। मैं अपने उन दोस्तों को बताना चाहता हूं कि डैनिश तो आज भी प्रचलन में है और हजारों उत्तराखंडी इसका पान कर अपना गला तर कर रहे हैं। #डैनिश उस समय बुरी थी तो आज भाजपा के समय में डैनिश उपयोगी कैसे हो गई? आज तो डैनिश ही नहीं हिलटॉप भी है और #हिलटॉप अब उत्तराखंड में बन रही है, हमारे देव स्थान देवप्रयाग में गंगा जी के ऊपर के एक गांव में बन रही है और भाजपा की सरकार ने दम ठोक करके लाइसेंस दिया है और आज हिल टॉप धड़ल्ले से उत्तराखंडी चरणामृत के रूप में लोगों को आनंदित कर रही है! डैनिश भी कोई शराब की ब्रांड है यह मुझे तब मालूम हुआ, जब इस ब्रांड को लेकर मेरे पास लोगों की शिकायतें आना शुरू हुई और 4-5 महीनों के अंदर हमने उनकी शिकायतों का तर्कसंगत समाधान भी कर दिया। मैं यह मानता हूं कि लगभग 4-5 महीने डैनिश बड़ी मात्रा में प्रचलन में रही, सूर्यवंशी भी नाराज थे और चंद्रवंशी भी नाराज थे, बिना मेरी अनुमति के मेरे एक सहयोगी की मिलीभगत से बड़ी मात्रा में डैनिश ब्रांड शराब बाजार में थोप दी गई। लोगों की शिकायतें आते ही मैंने पूछताछ शुरू की तो मुझे आश्चर्य हुआ कि कैसे इतनी बड़ी मात्रा में डैनिश बाजार व सुधा ग्राहियों पर थोपी गई? हमने उत्तराखंड के फलों व सब्जियों की खपत बढ़ाने के लिए एक निर्णय लिया, इस निर्णय के तहत उत्तराखंड में शराब के सप्लायर कंपनियों से कहा गया कि यदि उनकी कंपनी अपनी शराब के ब्रांड के डिस्टिलेशन (वाष्पन) में 20 प्रतिशत तक उत्तराखंड के फलों व सब्जियों का उपयोग करेंगे तो उन्हें उत्तराखंड में शराब की विक्रय में 20 प्रतिशत तक मार्केटिंग राइट दिए जाएंगे। इसके लिए दो मंडियां टनकपुर और कर्णप्रयाग नामित की गई। केवल डैनिश निर्माता कंपनी ने हमारी शर्त मानी और इसका फायदा उठाकर एक मिली भगत के तहत वर्ष भर का कोटा 4-5 महीने के अंदर ही उत्तराखंड के शराब की बाजार में डाल दिया गया। हाय तौबा मचने के बाद हमने इस पर रोक लगाई। मगर मेरा आज भी मानना है कि उत्तराखंड के फल और सब्जियों के उत्पादकों को यदि हम प्रोत्साहित करना चाहते हैं तो हमें उपरोक्त प्रश्नगत निर्णय का अनुसरण करना चाहिए, मगर आंख-कान खोलकर। उत्तराखंड में हमारी सरकार ने एप्पल मिशन, चूलू मिशन, एप्रिकॉट मिशन, कीवी मिशन प्रारंभ किये। हमने चूलू (चुआरू) विलेजेज चयनित किए। मैं इस तथ्य को जानता हूं कि उत्तराखंड का सेब मार्केट में लोकेशनल डिसएडवांटेज के कारण हिमाचल और जम्मू कश्मीर के सेब का मुकाबला नहीं कर पाता है। हमारे यहां केवल उत्तरकाशी और चकराता का सेब ही मुकाबला कर पाता है। भले ही हमने एप्पल मिशन के तहत ड्वार्फ वैरायटी के सेब की पौंध उत्पादकों को उपलब्ध करवाई। यह पौंध 3 साल के अंदर ही फल देने लगती है, इस वैरायटी की नर्सरियां भी विकसित की, उसके कुछ बगीचे भी नमूने के तौर पर बनाए जिसके उत्पाद आज मार्केट में आ रहे हैं। हिमाचल और जम्मू कश्मीर में स्नो लाइन नजदीक होने तथा अधिकांश हिस्से के नॉर्थ फेसिंग होने के कारण सेब का उत्पादन अधिक होता है और उनके सेब उत्तराखंड के सेब के मुकाबले में अधिक चमकीले और बाजार को आकर्षित करने वाले होते हैं। हमारा ए ग्रेड सेब तो मार्केट में बिक जाता है, मगर बी और सी ग्रेड सेब को कम कीमत मिलती है, जबकि उत्पादन की लागत अधिक होती है। यदि हमें उत्तराखंड को फल और सब्जी उत्पादक राज्य के रूप में आगे बढ़ाना है तो हमें इन फल और सब्जियों के उपयोग के दूसरे रास्ते भी ढूंढने पड़ेंगे। हमें अपने फलों को खाने के उपयोग के साथ उनके कुछ और उत्पाद बनाने के रास्ते ढूंढने पड़ेंगे। हिमाचल फ्रूट वाइन बनाता है। हमें भी कुछ इसी तरीके के उत्पाद तैयार करने पड़ेंगे जिनकी मार्केट में मांग हो। हमारी सरकार ने इस दिशा में प्रयास किया था, मडुवा बियर व फ्रूट वाइन आदि तैयार करने का, इसे हेतु कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा स्थान भी चयनित किए गए। एक राजनीतिक दल द्वारा प्रायोजित विरोध के कारण चुनाव की निकटता को देखते हुए हमने वाइनरीज लगाने का विचार स्थगित कर दिया। डैनिश आज भी प्रचलन में है उसका उत्पादक आज भी सत्ता प्रतिष्ठान का चहेता है, मगर उसके उत्पाद का सहारा लेकर कई शक्तियां मुझे चलन से बाहर करना चाहती हैं। राजनीति शास्त्र में जिसके पास अंतिम अधिकार होता है, उसे ही जवाब देह बनना पड़ता है। उत्तराखंड का सेब बिके इस चाहत में मैं जनता की चाहत से बाहर हो गया?

दल_बदल और सरकार की बर्खास्तगी के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम निर्णय आने के बाद हमारे पास अवसर था कि हम विधानसभा भंग की संस्तुति कर चुनाव में जाने का निश्चय व्यक्त करते। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि यदि हम उस समय चुनाव में जाते तो हमें बहुमत मिलता। मैं और मेरे अधिकांश साथी भी चुनाव में जाने के पक्षधर थे। मगर कुछ प्रभावशाली सहयोगी अपने क्षेत्र के विकास व जन कल्याण के कार्यों को करवाने के लिए विधानसभा को भंग करने की संस्तुति दिये जाने के विरोध में आ गए। हमारे सहयोगियों का एक समूह जिसकी मदद से कांग्रेस 2012 में सत्तारूढ़ हो पाई और वर्ष 2014 में भी विषम परिस्थितियों में भी जिन लोगों ने हमारी सरकार का बहुमत बनाए रखने में मदद दी, उनका भी स्पष्ट मत था कि हमें विधानसभा भंग करने के प्रश्न पर विचार नहीं करना चाहिए। सरकार और पार्टी में विरोधाभासों के चलते यह देखकर देहरादून और दिल्ली में गिद्ध नजर गड़ाये बैठे हैं, मैंने विधानसभा भंग करने की संस्कृति के ऑप्शन को छोड़ दिया। मेरे साथियों को उस वर्ष के बजट प्रस्तावों से बड़ी उम्मीद थी। विधानसभा में बहुमत हासिल करने के दिन मैंने ढोल-नगाड़ों के साथ गांधी पार्क में चुनाव में जाने के पार्टी के इरादे की घोषणा करने का मन बनाया था। चुनाव में जाने के विरोध में जिन लोगों की राय थी उनका निष्कर्ष उस वर्ष के बजट प्रस्तावों पर आधारित था। दुर्भाग्य से माननीय राज्यपाल और केंद्र सरकार के षड्यंत्र के कारण विधानसभा द्वारा पारित बजट 4 महीने तक महामहिम राज्यपाल के अनुमोदन के लिए लटका रह गया और विधानसभा को एक नया इतिहास बनाना पड़ा, अपने पूर्व पारित बजट को दूसरी बार पारित करना पड़ा। यह विलंब बजट के पारण के बाद भी विकास के दृष्टिकोण से बड़ा घातक रहा। हम लक्ष्यगत योजनाओं को चुनाव से पहले स्वरूप नहीं दे सके और हमारी स्थिति माया मिली, न राम वाली हो गई। मैं उत्तर प्रदेश के साथ चुनाव में जाने का पक्षधर नहीं था। मैं देख रहा था कि 2014 से उत्तर प्रदेश में फैल रही सांप्रदायिकता का दुष्प्रभाव हमारे राज्य पर भी पढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश में हो रहा संप्रदाय आधारित विभाजन का दुष्प्रभाव हमको भी झेलना पड़ेगा, ऐसा मेरा मानना था। यह दुष्प्रभाव उत्तर प्रदेश में श्री योगी आदित्यनाथ जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद और अधिक प्रभावी हो गया। श्री योगी जी का पुण्य जन्म स्थल हमारे राज्य के पौड़ी जनपद में है।

उत्तराखंड #सचिवालय में प्रारंभ से ही चतुर्थ तल पर केवल मुख्यमंत्री और उनसे जुड़े हुए शासकीय लोग बैठते हैं। मंत्री या कोई दर्जा प्राप्त व्यक्ति को चतुर्थ तल पर कार्यालय नहीं दिया जाता है। मैंने लगभग अपने ही साथ नियुक्त किये एक राजनीतिक व्यक्ति को कार्यालय देने पर सहमति दी। उस समय भी राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में मेरे इस निर्णय पर भौएं सिकुड़ी गई, मीडिया में भी चर्चा हुई। मैंने इन चर्चाओं को दरकिनार करते हुए मुख्य सचिव और प्रधान सचिव मुख्यमंत्री तथा प्रमुख सचिव वित्त की बैठक बुलाकर इन्हें चतुर्थ तल पर अपने एक विशिष्ट सहयोगी को कार्यालय देने का महत्व समझाया। लगभग डेढ़ साल तक परिणाम इच्छित रहे। डेढ़ साल बाद धीरे-धीरे कुछ शिकायतें प्रत्येक स्तर से आने लगी, मंत्री, विधायक, राजनीतिक कार्यकर्ता और दबे ढंग से कुछ अधिकारियों द्वारा भी शिकायत की गई। कुछ लोगों ने फुसफुसाहट के तौर पर और कुछ ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि बजट पारण में विद्रोह करने वालों ने अपनी नाराजगी का प्रमुख कारण चतुर्थ तल पर बैठे मेरे सहयोगी को बताया। पार्टी के शीर्ष हल्कों ने भी इस संबंध में मुझे स्पष्टीकरण मांगा। मैंने सभी संबंधित लोगों से साफ तौर पर कहा कि वह एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और मेरी आज तक की राजनीतिक यात्रा में मेरे साथ एक परफेक्ट गुअर की तरीके से काम करते रहे हैं। दुर्भाग्य से वह चुनाव हार गए हैं, यदि वह चुनाव नहीं हर होते तो मैं निश्चय ही उन्हें मंत्री बनाने की अनुशंसा करता। मेरा कर्तव्य है कि मैं उन्हें महत्ता प्रदान करूं और यह महत्ता उनके ऊपर कृपा नहीं है, उन्होंने पार्टी की सेवा कर इसे अर्जित किया है। पार्टी के संघर्ष के दिनों में उन्होंने अपनी संपूर्ण शक्ति लगभग बंजर पड़े हुए राजनीतिक खेत को जोतने के मेरे प्रयासों के साथ लगाई। मेरे दृण रूख को देख कर चर्चाएं थम गई। समय का कालचक्र बदलता है, उसके साथ व्यक्ति की धारणाएं और अपेक्षाएं भी बदल जाती हैं। बदली हुई अपेक्षाओं में लोग व्यक्ति के पिछले निर्णयों और कार्यकाल का विश्लेषण करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को बदली हुई राजनीतिक स्थिति में अपनी राय और पोजीशन बदलने का हक है। मगर चर्चाएं तो चर्चाएं हैं और कभी-कभी यह चर्चाएं सवाल भी पैदा करती हैं। मुझसे बहुधा मेरे साथीगण चतुर्थ तल और उसके प्रभाव पर चर्चा भी करते हैं, सवाल भी उठाते हैं। परंतु मेरा विचार संवत निष्कर्ष है कि मैंने उसे स्थिति में सही निर्णय लिया था। इन उपरोक्त सभी सवालों की चुभन मुझे गुदगुदाती है। क्योंकि इनमें से कोई भी निर्णय ऐसा नहीं है जिस निर्णय में मैंने जनहित और राज्यहित को अनदेखा किया हो। जब आप काम करते हैं तो बहुत कुछ छूट जाता है। मुझे विश्वास है मैं जहां तक अपनी सोच को लेकर के आप आया हूं, आगे आने वाले समय में कोई न कोई वहां से आगे की तरफ चलेगा।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in उत्तर प्रदेश

Advertisiment

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page