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उत्तराखण्ड

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पैतृक गांव में समस्याओं का अंबार, सात किमी चलने के बाद मिलता है उपचार

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पिथौरागढ़ के कनालीछीना के दूरस्थ गांव हड़खोला के पुष्कर सिंह धामी के सिर दोबारा प्रदेश के मुखिया का ताज सजा हो। लेकिन उनके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। उनके सामने प्रदेश के साथ ही समस्याओं से घिरे अपने गांव के लोगों को राहत पहुंचाने की भी चुनौती है।

जिला मुख्यालय से 32 किमी दूर सीएम पुष्कर धामी के पैतृक गांव हड़खोला में समस्याओं का अंबार है। उनके पहली बार सीएम बनने के बाद किसी तरह गांव तक सड़क बनीं है। अब भी उनके गांव को जोड़ने वाली पांच किमी सड़क में डामरीकरण नहीं हो सका है। इसके इंतजार में लोग कच्ची सड़क में हिचखोले खाने को मजबूर हैं।

उनके गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का भी बुरा हाल है। यहां के ग्रामीणों को मामूली उपचार के लिए भी 7 किमी दूर ऐलोपैथिक चिकित्सालय रणगांव की दौड़ लगानी पड़ रही है। गांव के सबसे नजदीक डीडीहाट सीएचसी व कनालीछीना पीएचसी में उचित स्वास्थ्य सुविधाएं न होने से गर्भवती महिलाओं के सामने जिला मुख्यालय की दौड़ लगाना ही एकमात्र विकल्प है। इन सब के बीच उनके गांव के लोगों की खुशी देखते ही बन रही है। उनके चेहरे पर गांव के बेटे के सीएम बनने की खुशी के साथ गांव की समस्याओं से निजात मिलने की उम्मीद है।

पांचवीं के बाद स्कूल के लिए 6 से 10 किमी की दौड़
सीएम के गांव हड़खोला में प्राथमिक स्कूल खोला गया है। लेकिन यहां पढ़ने वाले छात्रों की दिक्कत पांचवी पास करने के बाद बढ़ जाती है। पांचवी पास करने के बाद अपने सुनहरे भविष्य के सपने लिए छात्रों को 6 से 10किमी दूर इंटर कॉलेज हचीला या कनालीछीना की दौड़ लगानी पड़ती है।

गांव के 150 युवा लगाए हैं रोजगार की उम्मीद
वैसे तो प्रदेश में हर घर के युवा व युवतियां बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। लेकिन सीएम पुष्कर धामी के पैतृक गांव हड़खोला व उसके आसपास के क्षेत्र में भी बेरोजगारी कम नहीं है। बेरोजगारी की मार झेल रहे गांव के 150 से अधिक युवा रोजगार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। जिस तरह पहली बार सीएम के लिए उनके नाम की घोषणा होते ही उन्होंने अपनी जड़ों को याद कर अपने गांव व विकासखंड का नाम लिया था, इन हालातों में उनके गांव के लोगों को उनसे उम्मीदें बढ़ गई हैं।

पलायन की मार झेल रहा है सीएम का गांव हड़खोला
सीएम का पैतृक गांव हड़खोला पलायन की मार से अछूता नहीं है। सड़क, शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में उनके गांव के लोग साल-दर-साल पलायन कर रहे हैं। नतीजा यह है कि दो दशक पहले तक उनके गांव के पैतृक तोक में 70 से अधिक परिवार निवास करते थे। लेकिन अब यहां महज 23 परिवार रहते हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि गांव अब सुविधा संपन्न होगा और पुरानी रौनक फिर से लौटेगी।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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