धर्म-संस्कृति
जय श्री राम: बालम सिंह महरा बने भवाली आदर्श रामलीला कमेटी के अध्यक्ष, स्वर्णिम इतिहास रहा है भवाली की प्रसिद्ध रामलीला का
भवाली। आज देवी मंदिर भवाली की आम जनता की सर्व सम्मती से बालम सिह महरा को भवाली आदर्श रामलीला कमेटी का अध्यक्ष चुना गया। बता दें कि इससे पहले स्व. मोहन सिंह बिष्ट कमेटी के अध्यक्ष थे। लम्बी बिमारी के बाद उनके निधन से यह पद रिक्त हो गया था।बालम महरा जी के अध्यक्ष बनने पर महासचिव संजय जोशी, कोषाध्यक्ष हरिशंकर काण्डपाल, राजेन्द्र कपिल, महेशजोशी, प्रशांतजोशी,मनीश साह, लवेन्द्र क्कीरा, जुगल मठपाल, सतीश जी, धीरज पीढालनी, पकंज अद्वैती, मुकेश गुरुरानी आदि ने शुभकामनायें दी।
श्री मेहरा ने कहा कि भवाली की रामलीला का अपना एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शानदार इतिहास रहा है। कुमाऊं के तमाम गंतव्यों की ओर जाने के लिए प्रमुख स्थान भवाली अपने आप में ही संस्कृति का एक बहुत बड़ा केंद्र है। पूर्व के वर्षों में यहां भवाली की रामलीला कमेटी ने नायब रामलीलाए प्रस्तुत कर संस्कृति के संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कहा कि पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय मोहन सिंह जी के प्रयासों को आगे बढ़ते हुए रामलीला को भव्य रूप और आकर्षक बनाया जाएगा।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, साभार काफल ट्री बीसी पंत
पिछली सदी के साठ के दशक का एक कालखण्ड ऐसा भी रहा, जब भवाली की रामलीला में पिता हरिदत्त सनवाल दशरथ के पात्र हुआ करते थे और राम तथा लक्ष्मण का किरदार उनके पुत्र पूरन सनवाल व महेश सनवाल निभाते थे. हरिदत्त सनवाल जी की भवाली में वर्तमान कुंवर मिष्ठान के सामने आढ़त हुआ करती थी, उनकी लम्बी दाढ़ी तथा चेहरे का नाक-नक्श ऐसा था कि ज्यादा मेकअप तथा बनावटी दाढ़ी लगाने की जरूरत नहीं पढ़ती. उनके दशरथ के किरदार की जो छवि बालमन में अन्दर तक बैठ गयी, आज भी दशरथ का स्मरण होने पर उनका चेहरा आँखों पर उतर आता है.सीता का पात्र हरीश जोशी का रहता और राजेन्द्र बिष्ट अपनी गरजती व दमदार आवाज में रावण के चरित्र को जीवन्त कर देते. अधिक पात्रों का विवरण तो स्मरण नहीं है, लेकिन इतना याद है कि हारमोनियम पर देवी मास्टर (देवी राम ) की तबले पर संगत मनोहर लाल मासाब किया करते. देवी राम जी का तो पिछले वर्षों लखनऊ में निधन हो चुका है। रामलीला भवाली के अतीत के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि दौड़ाते हैं.ज्ञात स्रोतों के अनुसार भवाली में रामलीला का इतिहास 70-80 साल पुराना रहा है. तब भवाली आज की तरह विकसित शहर न होकर एक ग्रामीण कस्बा हुआ करता था और आबादी भी बमुश्किल 2-4 हजार की रही होगी. बुजुर्ग बताते हैं कि शुरूआती दौर में भवाली-भीमताल मार्ग में नैनी बैण्ड पर सड़क पर रामलीला हुआ करती थी, बाद मे कभी पन्त इस्टेट और कभी श्यामखेत में भी लालटेन की रोशनी में रामलीला में मंचन हुआ. पचास अथवा साठ के दशक में ( निश्चित वर्ष ज्ञात नहीं ) रामलीला का मंचन देवी मन्दिर के सामने लकड़ी टाल से सटे मैदान में होने लगा, जिसे साठ के दशक से लगातार इसी जगह पर मंचित किया जाने लगा. जनसंख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी से दर्शकों की संख्या बढ़ती गयी और यह स्थल अपर्याप्त मानकर पिछले 5-7 साल से रामलीला का मंचन नगरपालिका मैदान में होने लगा है. हालांकि परिस्थितिवश बीच में 7-8 वर्षों तक भवाली की रामलीला बाधित रही, लेकिन आज यहां की रामलीला पुनः अपना भव्य रूप ले चुकी है.