हल्द्वानी
…और पलक झपकते ही ओझल हो गए बॉस, डॉ महेश के संग ट्रैकिंग पर गए साथी ने बताई आंखों देखी
हल्द्वानी : रोमांच के शौकीन डा. महेश कुमार का यूं बिछड़ना पूरी जिंदगी नहीं भूलूंगा। हादसे को लेकर विश्वास ही नहीं हो रहा। हम साथ ही तो ट्रैकिंग के लिए श्रीनगर रवाना हुए थे। नैनीताल के चार दोस्तों के साथ हमारा कुल आठ का दल था। दिल्ली से दो विदेशी भी साथ हो लिए। वहां पहुंचने पर अचानक मौसम खराब हो गया। तेज बारिश ने मुश्किल बढ़ा दी। ट्रैकिंग बीच में ही छोड़नी पड़ी।
पहलगाम क्षेत्र की तारसर-मारसर झील से निकले गधेरे पर बने लकड़ी के अस्थायी पुल से स्थानीय तीन गाइड के साथ हम सभी 13 लोग गुजर रहे थे। अचानक डा. महेश कुमार का पैर फिसला। उनकी चीख निकली और पलक झपकते ही वह तेज बहाव की चपेट में आ गए। हम अवाक थे। कुछ समझ नहीं आया। आखिर हो क्या गया? उफ्फ…बड़ा ही दुखद मंजर रहा।

अफसोस यही है कि हम बाॅस (डा. महेश) को बचाने लिए कुछ न कर सके। जब भी आंख बंद करता हूं तो सामने उन्हीं का चेहरा नजर आता है। हल्द्वानी लौटने के बाद मीडिया से बातचीत में डा. महेश के साथ ट्रैकिंग पर गए वरिष्ठ दंत रोग विशेषज्ञ डा. रोशन ने घटना की आंखों देखी बयां की।
जलप्रपात के पास टूट गई उम्मीद
डा. रोशन घटना को याद कर सिहर जाते हैं। आंखें भर जाती हैं। रुंधे गले से वह बताते हैं कि 22 जून का मनहूस दिन पूरी उम्र नहीं भूलूंगा। सुबह 8:30 बजे डा. महेश कुमार का पैर फिसला और वह गधेरे में गिर गये। उन्हें बचाने के प्रयास में स्थानीय गाइड शकील ने भी छलांग लगा दी।
बारिश के कारण बहाव बहुत तेज था। इसके बावजूद शकील ने करीब 200 मीटर तक डा. महेश को किसी तरह थामे रखा था। बचाने का हर प्रयास किया। लेकिन आगे जलप्रपात के पास दोनों एक-दूसरे से छूटे और फिर उनका पता नहीं चला। इसी के साथ डा. महेश को बचाने की उम्मीद भी टूट गई। बड़ी मुश्किल से गुरुवार को शकील का शव बरामद हो सका।
सलामती की प्रार्थना और तलाशी के 72 घंटे
डा. महेश की तलाश में बुधवार से ही स्थानीय प्रशासन ने अभियान शुरू कर दिया। गुरुवार को भी पूरे दिन प्रयास जारी रहा। लेकिन डाक्टर साहब का कुछ पता नहीं चला। इस बीच हम सभी उनकी सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहे। शुक्रवार को उम्मीद जगी कि उनका कुछ पता चल जाएगा। लेकिन शाम चार बजे उम्मीद फिर टूट गई। उनका कुछ पता नहीं चला।
बुझे मन से वापसी
सर्च आपरेशन में सफलता नहीं मिलते देख डा. रोशन के साथ गए अन्य लोग बुझे मन से श्रीनगर से वापस लौट आए। लेकिन वहां डाक्टर साहब की बेटी अपनी मां और पति के साथ अभी भी वहीं मौजूद है।
उम्मीद की आखिरी किरण
नाला आगे जाकर लिद्दर नदी में मिल जाता है। गुरुवार और शुक्रवार को बारिश कम होने से नाले के साथ ही नदी का बहाव भी कम हुआ। ऐसे में शनिवार को सर्च आपरेशन चला तो डा. महेश के मिलने की कुछ उम्मीद बची है।
हल्द्वानी में शोक
जैसे-जैसे समय बढ़ रहा है, डा. महेश के न मिलने से स्वजनों व शुभचिंतकों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है।अस्पताल के कर्मचारी भी उदास हैं। सभी बार-बार स्वजनों से उनके बारे में जानकारी ले रहे हैं। आइएमए हल्द्वानी शाखा के अध्यक्ष डा. जेएस भंडारी ने बताया कि डा. महेश के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। पर अभी उनका कुछ पता नहीं चल सका है।
साभार दैनिक जागरण हल्द्वानी।

