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कला शिक्षा और नाट्य प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण डेरा अब कुमाऊं की तरफ…हल्द्वानी के बच्चों को मिला स्वयं को अभिव्यक्त करने का आनन्द

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  • रमोलिया हाउस में क्रिएटिव ड्रामा कार्यशाला संपन्न प्रवासी बच्चों संग तितली अभियान का भी हुआ आगाज़
  • डेरा थिएटर ने कुमांऊ में की कला शिक्षा की शुरुआत

हल्द्वानी। देहरादून का डेरा थिएटर अब कुमाऊँ में भी कला शिक्षा और नाट्य प्रशिक्षण की कार्यशालाएँ आयोजित करेगा। इसकी शुरुआत रमोलिया हाउस हल्द्वानी से हुई, जहाँ हिमालयन डायलॉग्स और काफल ट्री लाइव के सहयोग से क्रिएटिव ड्रामा की एक दिवसीय कार्यशाला संपन्न हुई। इस पहली कड़ी में शहर के छह स्कूलों के बच्चों ने भाग लिया। कार्यशाला का उद्देश्य था बच्चों को कला के विविध रूपों से परिचित कराना, रचनात्मक अभिव्यक्ति का अवसर देना और व्यक्तित्व विकास की दिशा में नई राहें खोलना। वहीं शाम को फतेहपुर के चार धाम मंदिर प्रांगण में प्रवासी मजदूरों के बच्चों के बीच हिमालयन डॉयलॉग के साथ मिलकर तितली अभियान का आगाज एक नाट्य कार्यशाला के साथ किया गया जिसमें शहर के मजदूर परिवार के बच्चों को भी कला शिक्षा से जोडने की शुरुआत की गई।

सुबह 11 से दोपहर 1:30 बजे तक रमोलिया हाउस में चली इस कार्यशाला का संचालन देहरादून से आए शुबा ने किया था जिन्हें उत्तराखंड के लोग सुभाष रावत के रूप में जानते हैं। शुबा नाट्य गतिविधियों और कला के माध्यम से व्यक्तित्व विकास की गहन कार्यशालाएं करने के लिए जाने जाते हैं। इस कार्यशाला का उद्देश्य बताते हुए उन्होंने कहा, कार्यशाला का उद्देश्य बच्चों को यहां वह सब करने का अवसर देना था जो वो स्कूल में प्रायः नहीं कर पाते। जैसे, अपनी रचनात्मक सामर्थ्य नए सोपानों की ओर ले जाना; अपनी बात, अपना नज़रिया दूसरों के सामने बेझिझक रखना और दूसरे की बात को धैर्यपूर्वक सुनना; दूसरों से दोस्ती करते हुए उनको जानना; मिलकर काम करना; और मिलकर काम करने का आनन्द लेना।”कार्यशाला में शहर के बिड़ला स्कूल, निर्मला कॉन्वेंट, बीएलएम अकेडमी, स्वास्त्यन स्कूल और हैरिटेज स्कूल, ऑरम द ग्लोबल स्कूल के बच्चों सात्विक पाठक, नित्यम पाठक, दृष्टि, जाह्नवी, कार्तिक, जतिन, शाश्वत, मयंक, दिव्यांश, स्निग्धा, यात्रा, सारस्वत उप्रेती और आयुषी पंत ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। बच्चों ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएँ रोज़ होनी चाहिए। नित्यम ने कहा यहाँ गलती करने की भी आज़ादी थी। स्कूलों में ऐसा माहौल नहीं मिलता। कार्तिक ने कहा ड्रामा ने हमें सिखाया कि एक-दूसरे की बात सुनना भी कला है।

वहीं जाह्नवी बोलीं ऐसी कार्यशालाएँ पढ़ाई से ज़्यादा सिखाती हैं और खुद को समझने का मौका देती हैं। शाश्वत उप्रेती ने कहा कि यहां सवाल करने को डांटने के बजाय प्रोत्साहित किया गया।अभिभावकों और शिक्षकों ने भी इस पहल की सराहना की। उनका कहना था कि बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट की लत से बचाने के लिए भी ऐसे रचनात्मक अवसर अत्यंत ज़रूरी हैं। मॉडल स्कूल पटवाडांगर के प्रवक्ता विनोद जीना, भौतिकी के प्रवक्ता सुरेश उप्रेती, राजकीय इंटर कॉलेज बरहैनी के शिक्षक नेता सुरेश भट्ट, प्राथमिक शिक्षक रवि फुलारा, म्यर पहाड़ म्यर पच्छयांण ग्रुप के हिमांशु रिस्की पाठक, ट्रेड यूनियन लीडर के. के. बोरा, यूको बैंक की कर्मिक संचिता पाठक, स्वास्तयन स्कूल की शिक्षिका बीना जीना, एलआईसी कार्मिक हिमांशु और रेडियो पत्रकार सुनीता भास्कर ने कार्यशाला के अंतिम भाग कुटुंब थियेटर के परिचय सत्र में प्रतिभाग किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता पालीथीन बाबा प्रोफेसर व लेखक प्रभात उप्रेती ने की। उन्होंने कहा, बच्चों को जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जाती है, तो उनमें आत्मविश्वास और संवेदनशीलता दोनों का विकास होता है। यही शिक्षा का असली उद्देश्य है।शाम में फतेहपुर स्थित चार धाम मंदिर प्रांगण में डेरा थिएटर और हिमालयन डायलॉग्स ने अपने तितली अभियान का आगाज़ किया। इस विशेष सत्र में शहर के प्रवासी मजदूरों और बटाईदार परिवारों के बच्चों ने भाग लिया। इनमें से कई बच्चे स्कूल नहीं जाते उनके लिए यह कार्यशाला किसी त्यौहार जैसी रही पहली बार उन्होंने स्कूल से इतर किसी आयोजन में प्रतिभाग किया वह खुशी उनके चेहरों से झलक रही थी।

तितली अभियान की संयोजक सुनीता भास्कर ने कहा कि मजदूर परिवारों के बच्चे कई तरह के अभावों में जीते हैं उन तक खेल का सामान पहुंचाना, उन्हें ट्यूशन के लिए आर्थिक मदद देना व लोगों से डोनेट कर पढाई की सामग्री को उन तक पहुंचाना इस अभियान का मकसद है। साथ ही डेरा थियेटर के साथ मिलकर इन बच्चों को कला व थियेटर का प्रशिक्षण देने की शुरुआत भी आज से की गई है. शाम की कार्यशाला में देवपुर कुरिया स्कूल के राजेंद्र, पिंकी, कपिल, दीक्षा, डौली, रोहित समेत कई बच्चे मौजूद रहे। मजदूर अभिभावकों ने कहा कि हम मजदूरी के कुचक्र में फंसे हैं पर चाहते हैं कि हमारे बच्चे इस काम से थोड़ा आगे बढ़ें।

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संपादक

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