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उत्तराखण्ड

आखिर कब सुलझेगा उत्तराखंड की स्थायी राजधानी का मसला, अब तक हुई सिर्फ राजनीति

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देहरादून। Uttarakhand Vidhan Sabha Election 2022 उत्तराखंड को राज्य बने हुए 21 साल हो चुके हैं, लेकिन स्थायी राजधानी का सवाल जस का तस है। सत्तासीन होते रहे राजनीतिक दलों ने जन भावनाओं को हवा देकर इस मुद्दे पर राजनीति तो जमकर की, लेकिन समाधान करने के बजाय इसे हर बार आगामी वर्षों, या यूं कहिए कि अगले चुनाव तक के लिए टाला जाता रहा। राज्य आंदोलन से उपजी जन भावनाओं ने गैरसैंण को स्थायी राजधानी के रूप में देखा, लेकिन कभी दीक्षित आयोग की रिपोर्ट तो कभी चुनावी समीकरणों का हवाला देकर यह भी अंतिम परिणति तक नहीं पहुंचा। राज्य की पांचवीं विधानसभा चुनाव के मौके पर यह मुद्दा फिर गर्मा गया है। भाजपा सरकार ने एक साल पहले गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया तो अब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इसे राजधानी बनाने का संकल्प जताया है।

आयोग बना, नहीं सुलझा राजधानी का मसला

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद स्थायी राजधानी के मुद्दे को सुलझाने के लिए एकल सदस्यीय दीक्षित आयोग का गठन किया गया था। नौ नवंबर, 2000 को उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 11 जनवरी, 2001, यानी दो महीने बाद राजधानी के मसले को सुलझाने के लिए सेवानिवृत्त जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय राजधानी चयन आयोग गठित किया गया। आयोग ने 11 बार कार्यकाल विस्तार पाने के बाद 17 अगस्त, 2008 को अपनी संस्तुतियां भाजपा की तत्कालीन खंडूड़ी सरकार को सौंपीं थी। इसे 13 जुलाई, 2009 को विधानसभा में पेश किया गया था। आयोग गैरसैैंण को स्थायी राजधानी बनाने के पक्ष में नहीं रहा।

पर्वतीय क्षेत्र की सीटों के गणित को साधने की जुगत

गैरसैंण के बहाने दरअसल पर्वतीय सीटों का गणित साधने जुगत भिड़ाई जाती रही है। राज्य की कुल 70 सीटों में से गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में पर्वतीय प्रकृति अथवा इन क्षेत्रों की आबादी की बहुलता वाली सीटों की संख्या 40 से अधिक है। अन्य 10 सीटों पर भी पर्वतीय जिलों से संबंध रखने वाले मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है। यही वजह है कि गैरसैंण के बहाने दोनों मंडलों के पर्वतीय क्षेत्रों को संदेश देने की कोशिश की जाती है। यह अलग बात है कि राजनीतिक दलों की यह सोच अभी तक मतदाताओं के मत व्यवहार को प्रभावित करती दिखाई नहीं दी है।

गैरसैंण पर स्पष्ट रुख अपनाने में भी रहा पेच

प्रदेश में हरिद्वार जिले की 11 और ऊधमसिंह नगर जिले की नौ सीटों पर गैरसैंण मुद्दे का प्रभाव न के बराबर माना जाता है। यही नहीं, बड़ी और लगातार बढ़ती आबादी वाले इन जिलों की राजनीति को ध्यान में रखकर भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल गैरसैंण पर स्पष्ट रुख अपनाने से गुरेज करते रहे हैं। दलों ने इस मामले में अभी तक सुविधा के अनुरूप ही अपना रुख रखा है। कांग्रेस ने अब भले ही गैरसैंण को राजधानी बनाने का संकल्प लिया, लेकिन इससे पहले पार्टी की ही दो सरकारें इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख लेने से बची हैं। कमोबेश यही रुख भाजपा का भी रहा है। पिछली कांग्रेस सरकार ने गैरसैंण में विधानभवन व अन्य सरकारी भवनों के लिए मार्ग प्रशस्त किया तो भाजपा की सरकार चार मार्च, 2020 को गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना चुकी है।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मभूषण डा अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि यदि मंशा सही है तो कहीं से भी बैठकर कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है। ऐसा ही पहाड़ के विकास के मामले में भी है। प्रश्न ये है कि कौन कितनी गंभीरता से निर्णय लेता है। आज यदि 21 साल बाद भी हम राजधानी और विकास की बहस में लगे हैं तो यह राजनीतिज्ञों की गंभीरता को भी दर्शाता है।

साभार न्यू मीडिया

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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