उत्तराखण्ड
10 को असली चुनाव, बारी बारी या फिर मेरी बारी, परंपरा और मिथक के बीच टक्कर का होगा खुलासा
हल्द्वानी। 10 मार्च को उत्तराखंड में एक दिलचस्प चुनाव होगा। बारी बारी की सरकार या फिर मेरी बारी, यानी परंपरा हर बार सरकार बदलने की या फिर दोबारा सत्तासीन सरकार की वापसी। क्या मिथक टूटेगा सत्ता बदलने का। इन दो मुद्दों के बीच चुनाव के बाद मिथक टूटने और परंपरा के बीच का परिणाम आएगा।
उत्तराखंड में इस चुनाव को बेहद अहम माना जा रहा है। इस चुनाव में पार्टियों के साथ कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। सूबे के साथ एक मिथक यह भी जुड़ा है हर बार यहां सरकार बदल जाती है। उत्तराखंड के चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम से मैदान में उतरी है। राज्य के छोटे दलों की भी परीक्षा है।
राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में यह पांचवां विधानसभा चुनाव है। अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में दो बार कांंग्रेस और दो बार भाजपा ने सरकार बनाई। 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाई और एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बने। 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में सरकार बदली और भाजपा सत्ता में आई। वहीं 2012 में हुए चुनाव में एक बार फिर सरकार बदली और सूबे की जनता सत्त से भाजपा को बेदखल कर कुर्सी कांग्रेस को सौंप दी। 2017 में मिथक बना रहा और एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। कांग्रेस बेदखल हुई और भाजपा रिकार्ड बहुमत से सत्ता में आई। इस बार देखने वाली बात होगी कि मिथक टूटेगा या सत्ता बनी रहेगी।
यह चुनाव मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के भविष्य के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है। भाजपा ने उन्हें मैच के आखिर ओवरों यानी चुनाव के महज छह-सात महीने पहले मैदान में उतारा। सीएम धामी ने खुद को साबित करने की कोशिश की। ताबड़तोड़ एक के बाद एक कई फैसले लिए। युवा, जवान और महिलाओं को अपने फैसलों से साधने की कोशिश की। वहीं चुनाव के आखिर दौर में उत्तराखंड में सरकार बनने पर कामन सिविल कोड लागू करने का भी पासा फेंका था। अब देखने वाली बात होगी कि उनके कामों जनता कैसे आकलन करती है।
भाजपा सरकार ने उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के तीन चेहरे बदले। शुरुआती चार सालों तक मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को पार्टी ने अचानक पद से हटा दिया और तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन वह भी महज तीन महीने तक ही सीएम पद पर बने रह सके और अपने ऊट-पटांग बयानों के कारण विवादों में आ गए। जिसके बाद पार्टी ने तीरथ को भी पदस्थ कर युवा चेहरे और खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया। देखने वाली बात होगी कि उत्तराखंड की जनता ने भाजपा के इस फैसले को किस तरह से लिया ह
इस चुनाव में भाजपा ने अबकी बार 60 पार का नारा दिया है। भाजपा प्रचंड बहुमत मिलने का दावा कर रही है। जबकि कांग्रेस 48 के आसपास सीटें मिलने की बात कह रही है। 10 मार्च को पता चल जाएगा बहुमत वाली सरकार बनेगी या सियासी दल 36 के जादुई आंकड़े से दूर रह जाएंगे। यदि ऐसा होता है तो क्या 2012 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी निर्दलीय सरकार गठन में किंग मेकर की भूमिका निभाएंगे? चर्चा भी है कि कुछ सीटों पर निर्दलीय चुनाव जीत कर आ सकते हैं।
इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कुमाऊं की लालकुआं सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिस पर देश भर की निगाहें गड़ी हुई हैं। वहीं पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं लैंसडान से चुनाव लड़ रही हैं। इस सीट पर भी लोगों की नजर जमी हुई है। के चुनावी नतीजा जानने की भी है। लोग यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस छोड़कर टिहरी से चुनाव लड़े पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय और भाजपा छोड़कर कांग्रेस से बाजपुर सीट पर ताल ठोकने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का क्या होगा? नजरें उनके सुपुत्र संजीव आर्य और कांग्रेस छोड़कर भाजपा से चुनाव में उतरी सरिता आर्य के नैनीताल सीट के चुनाव पर ही लगी हैं।
उत्तराखंड के चुनावी इतिहास से जुड़ा एक दिलचस्प मिथक यह भी है कि यहां शिक्षा मंत्री और पेयजल मंत्री चुनाव हार जाते हैं। इस बार गदरपुर से चुनाव लड़े शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय और डीडीहाट से पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल के सामने इस मिथक को तोड़ने की चुनौती है। लोगों की निगाहें गंगोत्री और रानीखेत विधानसभा से जुड़े मिथक पर भी लगी हैं? चार चुनाव से यह मिथक चला आ रहा है कि गंगोत्री से जिस दल का प्रत्याशी विजयी होता है, प्रदेश में उस दल की सरकार बनती है। रानीखेत में जिस दल का प्रत्याशी जीतता है, प्रदेश में उस दल की सरकार नहीं बनती। देखने वाली बात होगी क्या इस बार ये दोनों मिथक बरकरार रहेंगे या धरे रह जाएंगे।
मतदान के आखिरी दौर में भाजपा कांग्रेस और आप के स्टार प्रचारकों ने भी पूरी ताकत झोंकी। पीएम मोदी ने वर्चुअल जनसभा को संबोधित करने के बाद अल्मोड़ा, रुद्रपुर और गढ़वाल के श्रीनगर में भी जनसभा को संबोधित किया था। पीएम के अलावा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी, एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्ट ने भी प्रत्याशियों के समर्थन में रोडशो और जनसभा को संबोधित किया। जबकि कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में राहुल गांधी और प्रियंको जनसभा और रोड शो करने के लिए पहुंचे। देखने वाली बात होगी कि जिन सीटों पर स्टार प्रचारकों ने वोटरों के रिझाने की कोशिश की, उनका क्या प्रभाव रहा।