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पेट, हड्डियों, मस्तिष्क, गुर्दे, लसीका ग्रंथियों और आंतों सहित अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है टीबी… विश्व क्षय दिवस पर विशेष

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मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, देहरादून ने विश्व टीबी दिवस पर लोगों को किया जागरुक

हरिद्वार। विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस के अवसर पर मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, देहरादून ने क्षय रोग (टीबी) के विभिन्न प्रकारों पर जागरूकता बढ़ाने की पहल की। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य टीबी के लक्षणों, रोकथाम और उपचार के बारे में लोगों को शिक्षित करना है। अस्पताल यह संदेश देना चाहता है कि टीबी केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पेट, हड्डियों, मस्तिष्क, गुर्दे, लसीका ग्रंथियों और आंतों सहित अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।

डॉ. विवेक वर्मा, प्रिंसिपल कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल, देहरादून ने बताया कि “ट्यूबरक्लोसिस (TB) एक संक्रामक बीमारी है, जो एक बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। यह बीमारी संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकती है। अधिकतर मामलों में टीबी फेफड़ों में होती है, लेकिन यह रक्त के माध्यम से शरीर के किसी भी अंग में फैल सकती है। टीबी की बीमारी किडनी, लिवर, यूटेरस, स्पाइन, ब्रेन समेत किसी भी अंग में फैल सकती है।” उन्होंने कहा “ पल्मोनरी टीबी, सबसे आम टीबी है जो 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में लंग्‍स को प्रभावित करता है लेकिन अगर टीबी का बैक्‍टीरिया लंग्‍स की जगह बॉडी के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहलाती है।

अगर टीबी का बैक्‍टीरिया सेंटर नर्वस सिस्‍टम को प्रभावित करता है तो वह मैनिंजाइटिस टीबी कहलाती है। लिम्फ नोड में होने वाली टीबी को लिम्फ नोड टीबी कहा जाता है। हड्डियों व जोड़ों को प्रभावित करने वाली टीबी को बोन टीबी कहते है।टीबी के फैलने के कई कारण है, टीबी एक संक्रामक बीमारी है और खांसी इसके फैलने का मुख्य माध्यम है। टीबी के मरीज को हमेशा खांसते समय मुंह को ढ़कना चाहिए, जिससे यह बीमारी दूसरों में ना फैले। इसके अलावा, भीड़भाड़ वाले इलाके में रहने के कारण और खराब वेंटिलेशन भी इसके फैलाव को बढ़ावा देते हैं। कुपोषण भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को कमजोर कर देता है, जिससे व्यक्ति अधिक संवेदनशील हो जाता है।

डॉ. वर्मा ने बताया, “जिन व्यक्तियों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, उनमें टीबी होने का खतरा अधिक होता है। एचआईवी मरीज सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, और बच्चों में भी इसका जोखिम होता है। हालांकि, टीबी किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। “उन्होंने बताया कि “टीबी का इलाज इस बात निर्भर करता है कि टीबी किस जगह होती है। बॉडी के अलग-अलग जगहों की टीबी के इलाज की समय सीमा भी अलग होती है। हालांकि, टीबी का निम्‍नतम इलाज 6 महीने का है। लेकिन इसके इलाज में सबसे जरूरी बात ये है कि इसका इलाज खुद से बंद नहीं करना चाहिए। जब आपको डॉक्‍टर कहे तभी आपको दवा बंद करनी चाहिए।“इस जागरूकता अभियान के माध्यम से, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, देहरादून का उद्देश्य जनता को टीबी रोग के प्रारंभिक लक्षण, उचित उपचार और रोकथाम के उपायों के महत्व के बारे में शिक्षित करना है, ताकि इस बीमारी से प्रभावी रूप से कम किया जा सके।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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