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धर्म-संस्कृति

ब्रज इतिहास का एक सूत्र: ब्रज इतिहास पर पढ़िए प्रसिद्ध लेखक राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी का महत्वपूर्ण आलेख

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कागजों के ढेर में एक सिजरा मिल गया है,इसमें ब्रज इतिहास का एक सूत्र है।नष्ट न हो जाय,कभी किसी के काम आवे,इस ख्याल से यहाँ लिख दिया है.

यह विष्णुस्वामी वैष्णवपरम्परा हाथरस-पीठ से संबंधित है। मूल रूप से तो यह मथुरा की ही पीठ है किंतु अहमद शाह अब्दाली के द्वारा (1757 ईस्वी )मथुरा में किये गये कत्ले- आम के समय शीतलापायसे में जिसे आज फूटाघर या पुरानौ मंदिर कहते हैं, वहाँ पूरे परिवार को मार दिये जाने पर किसी प्रकार से बच गये अपने बच्चे को एक गोदी में और अपने मथुरानाथ ठाकुर को दूसरी गोदी में लेकर श्रीजुगलकिशोर जी यमुना में उतर गये, जैसे भी चले, चल चलाचल मुरसान पँहुच गये, वहाँ राजा पुहुपसिंह थे , भरतपुर महाराज के हफ्तहजारी सरदार । राजा ने परिस्थिति समझी और ठाकुरजी को प्रणाम किया, ठाकुर जी पहले मुरसान बिराजमान हुए फिर हाथरस बिराज गये।
ब्रज को जाटराजाओं की देन एक अलग विषय है।

वह बालक आगे चल कर वैष्णव
-उपासक और भागवत के विद्वान् वक्ता के रूप में बलदेवजी महाराज के रूप में प्रसिद्ध हुए. उनके तीन पुत्र हुए श्री गोपजी, श्री गयालाल जी और श्री चिम्मन लालजी।
श्री गोपजी के तीन पुत्र हुए -चट्टाजी, लल्लोजी और मीगलजी। लल्लोजी के पुत्र भानाजी हुए। भानाजी के दो पुत्र हुए -गोविन्दजी और विष्णुजी। विष्णुजी योगिराज महाराज रज्जू जी के यहाँ गोद चले गये और मथुरा की विष्णुस्वामी पीठ पर विराजमान हुए। रज्जूजी महाराज तक मुकुंदशरणागति मंत्र था, श्री विष्णु जी से गोपालमंत्र की प्रतिष्ठा हुई। श्रीविट्ठलेशजी महाराज इन्हीं के पुत्र थे।

श्रीबलदेवजी के दूसरे पुत्र श्रीगयालाल जी के यहाँ श्रीवामनजी महाराज का जन्म हुआ, वे अपने जमाने के सुप्रसिद्ध भागवत व्याख्याता हुए, उनकी एक पुस्तक श्रीदिनेशशास्त्री जी के यहाँ मैंने बचपन में देखी थी. इनके पुत्र हुए श्री द्वारकानाथ जी और श्रीअयोध्या नाथ जी। द्वारकानाथ जी के ज्येष्ठपुत्र श्रीस्वामी जनार्दनजी भागवत के उद्भट मनीषी थे, वे उड़ियाबाबा की गद्दी पर विराजमान हुए.
श्रीचिम्मनलाल जी के पुत्र बालकृष्ण बाल ब्रजभाषा के बहुत बड़े कवि हुए। श्रीजुगलजी और केदारजी उनके पुत्र हुए।

विष्णुस्वामी परम्परा में ही दिल्ली में श्री वंशीअलि जी का प्राकट्य हुआ था, बहुत बड़े उपासक और मनीषी थे, बरसाने में साधना की,उन्होंने ललितसम्प्रदाय का प्रवर्तन किया.ललितसम्प्रदाय के आचार्य वंशीअलि जी की पादुका मथुरानाथ जी के मंदिर में अद्यावधि विराजमान हैं।डा बाबूलाल गोस्वामी जो डा शरणबिहारी गोस्वामी जी के अनुज हैं, उन्होंने ललित सम्प्रदाय और साहित्य पर शोधप्रबंध लिखा है, उसमें वंशीअलि जी की स्थापना का विस्तार है। ललिता सखी की अवधारणा और राधा को लेकर जो सूत्र दिये हैं, वे राधा तत्त्व को समझने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। भारत में विष्णुस्वामी वैष्णव परम्परा विभिन्न रूपों में व्याप्त है। ललितसम्प्रदाय भी उसका एक सूत्र है.

विष्णुस्वामी परम्परा की इस पीठ का संबंध वंशीअलि जी की उसी परम्परा से है, यह बात भूलने की नहीं है।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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