Connect with us

उत्तर प्रदेश

##लाॅटरी घोटाला: 26 साल से फाइलों में कैद है चार करोड़ से अधिक का लॉटरी घोटाला

खबर शेयर करें -

लखनऊ। भ्रष्टाचार पर परदा कैसे डाला जाता है, यह खबर उसका जीता जागता प्रमाण है। प्रदेश में जो लॉटरी योजना सालों पहले बंद हो चुकी है, उससे संबंधित घोटाला भी 26 वर्षों से फाइलों में दबा हुआ है। भ्रष्टाचार निवारण संगठन (एंटी करप्शन) की जांच में बड़ी गड़बड़ियां मिलने के बावजूद इस घोटाले में कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि संबंधित विभाग के कर्मचारी अन्य विभागों में समायोजित किए जा चुके हैं।
पूरे प्रकरण में गृह विभाग ने एंटी करप्शन के पुलिस अधीक्षक की ओर से मार्च 2022 में दी गई जांच रिपोर्ट स्वीकार करते हुए कार्रवाई के लिए अपर मुख्य सचिव, वित्त को पत्र लिखा है। साथ ही कार्रवाई से गृह विभाग को भी अवगत कराने को कहा है। लॉटरी निदेशालय की सुपर लॉटरी योजना और दो रुपये की लॉटरी से संबंधित यह घपला वर्ष 1993-94 और 1995-96 में किया गया था।
निदेशक, विभागीय लेखा की विशेष ऑडिट रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई। यह रिपोर्ट वर्ष 2001 में ही आ गई थी। इसमें कहा गया कि निर्धारित सीमा से अधिक गारंटी पुस्कारों के भुगतान से 4 करोड़ 2 लाख 710 रुपये का चूना लगाया गया। साथ ही फर्जी स्टॉकिस्ट लेखों, बिना आवश्यकता के टिकटों की छपाई, विलंब से टिकटों की आपूर्ति, अनियमित प्रिंटिंग और हेराफेरी के बाबत भी विस्तार से बताया गया।
शासन के निर्देश पर तत्कालीन निदेशक, उत्तर प्रदेश राज्य लॉटरी, तत्कालीन वित्त नियंत्रक और 36 अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों को आरोप पत्र दिए जाने की व्यवस्था की गई। लेकिन, विभागीय जांच किसी सक्षम अधिकारी को नहीं दी गई। इतना ही नहीं, वर्ष 2014 में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों में से किसी को भी दोषी न पाए जाने की रिपोर्ट शासन के वित्त विभाग को भेज दी। एंटी करप्शन की जांच में सामने आया कि वर्ष 2008 में संबंधित निदेशालय से संशोधित आरोपपत्र उपलब्ध कराने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन रवैया टालने वाला ही रहा। इसके लिए 31 जनवरी को रिटायर हो चुके कार्यालय प्रभारी राजाराम और उसके बाद लेखाकार केके श्रीवास्तव को जिम्मेदार ठहराया गया है।
एंटी करप्शन की रिपोर्ट के अनुसार जीएस नयाल व राजाराम (सेवानिवृत्त बिक्री अधिकारी), केके श्रीवास्ताव (सेवानिवृत्त लेखाकार व कार्यालय प्रभारी), राजेश गोविल, डीएस चौहान व कालिंदी श्रीवास्तव (कनिष्ठ सहायक) के विरुद्ध ऑडिट आपत्तियों एवं घोटालों से संबंधित प्रकरण को दबाने व दोषियों को बचाने आदि से संबंधित अभिलेखीय साक्ष्य प्रमाणित पाए गए।
वित्त विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस घोटाले में लिप्त कर्मियों को महत्वपूर्ण पदों पर लगातार तैनाती दी जाती रही है। कनिष्ठ सहायक राजेश गोविल को तो 8 जुलाई को ही आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय में प्रभारी अधिष्ठान का प्रभार सौंपा गया है। हालांकि, इस बारे में निदेशालय के निदेशक हौसिला प्रसाद वर्मा का कहना है कि जांच में राजेश गोविल को क्लीन चिट मिल चुकी है। उनके यहां अधिष्ठान में कोई विशेष काम भी नहीं है।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in उत्तर प्रदेश

Advertisiment

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page