उत्तराखण्ड
कांग्रेस: अब क्यों देर हो रही टिकट हाथ आने में, फिर वही विधानसभा चुनाव वाली कहानी…ऊपर से “मैं नहीं” से हालात और खराब
- चुनावी रण में जाने से पहले ही दिग्गजों की न से भी कांग्रेस मुश्किल में और इसका मैसेज हाथ के लिए ठीक नहीं, इससे भी घोर कन्फूज़न
- तो क्या कांग्रेस के पास प्रत्याशियों का टोटा पड़ गया है या फिर प्रबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति
हल्द्वानी। लोकसभा चुनाव सिर पर और कांग्रेस फिर देरी से आराम में। यानी देर तो हो रही है मगर फिर भी सब आराम में है टिकट वितरण को लेकर। पैनल में नाम की चर्चा है, पैनल पर बातें हो रही हैं, दिल्ली से टिकट फाइनल होने हैं, मगर अब तक कांग्रेस फिलहाल टिकट वितरण के मामले में भाजपा से कहीं पीछे चल रही है। यह दृश्य कुछ-कुछ विधानसभा चुनाव जैसा ही नजर आ रहा है जब शुरुआत में टिकट वितरण में देरी हुई और बाद में टिकट बंटे तो फिर ऐसा रायता फैला की जिसे समेटना ही मुश्किल हो गया। सिर फुटअव्वल की नौबत, सीटों की अदला-बदली और फिर चुनाव और उसके बाद हार। कल जुम्मा 5 सीटें और उस पर भी अभी तक प्रत्याशियों का चयन न होने से साफ है कि कांग्रेस अभी टिकट वितरण को लेकर असमंजस की स्थिति में है। इन बातों से अगर कोई मुश्किल में है तो वह केवल और केवल कांग्रेस का कार्यकर्ता। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अगर लड़ना नहीं था तो कम से कम टिकट वितरण से पहले न तो नहीं कहते। दिल की बात अगर दिल में ही रहती ही तो कितना अच्छा होता कांग्रेस के लिए जिसे चुनावी रण में उतरने से पहले कम से कम “मैं नहीं” जैसी बात तो न सुननी पड़ती।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड की तीन लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर प्रत्याशी चयन के मामले में शुरुआती बढ़त ले ली। तो क्या कांग्रेस के पास प्रत्याशियों का टोटा हो गया है जो कि भाजपा के प्रत्याशियों से सीधी टक्कर न ले सकें। तमाम कद्दावर नेताओं के उत्तराखंड कांग्रेस में होने के बावजूद अगर टिकट वितरण में देरी हो रही है तो इससे कार्यकर्ताओं में नाराजगी होना स्वाभाविक है। ऊपर से मुसीबत यह कि कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लड़ने में पहले ही असमर्थता जता चुके हैं। उन्हें लोकसभा चुनाव भले ही नहीं लड़ना था मगर इस बात का तो ध्यान रखा ही जा सकता था कि कम से कम चुनाव से पहले यह तो न कहें कि हमें चुनाव नहीं लड़ना है। टिकट वितरित होते और चुनाव नहीं लड़ने वालों की जगह उन लोगों के नाम फाइनल हो जाते जो चुनाव लड़ना चाहते हैं। मगर टिकट की घोषणा से पहले ही चुनाव न लड़ने की बात एक गलत संदेश के रूप में प्रसारित हो रही है। मुसीबत यह है कि पहले तो दिग्गजों को ढूंढना जो चुनाव लड़े और जो चुनाव के लिए फिट हैं उनका चुनाव से इनकार।
अब बात फिर से टिकट वितरण की करते हैं। आपको 2022 का विधानसभा चुनाव तो याद होगा ही जिसमें टिकट वितरण के मामले में कांग्रेस ने एक ऐसा “तू नहीं मैं, मैं नहीं तू” का खेल खेला जिससे उसे बहुत नुकसान उठाना पड़ा। पहले तो अंतिम समय तक टिकट का बंटवारा नहीं हुआ और फिर टिकट बंटे भी तो इस प्रकार से कि बाद में टिकटों की अदला बदली करनी पड़ी और तमाम प्रत्याशियों के टिकट काट भी दिए गए। फिर दौर शुरू हुआ धरने प्रदर्शन और तमाम नाराज़गियों को सामने लाने का जिससे कांग्रेस खुद ही एक तरीके से डैमेज हो गई।
अब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और यहां पैनल घूम रहा है। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस से शुरुआती मनोवैज्ञानिक बढ़त तो ले ही ली इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। बिहार आजाद कार्यकर्ताओं का यह मानना है कि कम से कम विधानसभा चुनाव की टिकट वितरण से सबक लेकर कांग्रेस को जल्द से जल्द यहां प्रत्याशियों की घोषणा कर देनी चाहिए जिससे कि चुनाव की तस्वीर साफ हो सके और चुनाव प्रबंधन और उसकी तैयारी को लेकर आगे बढ़ा जा सके।
मालूम हो कि नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य का नाम पिछले काफी समय से अल्मोड़ा पिथौरागढ़ सीट के लिए चर्चा में है जबकि टिहरी लोकसभा सीट से पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का नाम शुरू से आगे रहा है। हरिद्वार में तो पूर्व सीएम एक बार फिर से भाग्य आजमाना चाहते हैं लेकिन वह गाहे बगाहे अपनी दावेदारी पीछे करते हुए अपने बेटे का नाम आगे बढ़ा देते हैं। नेता प्रतिपक्ष आर्य हाल ही में चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं तो प्रीतम सिंह दिल्ली जाकर प्रदेश प्रभारी के सामने अपनी इच्छा का इजहार कर चुके हैं।
- चुनाव लड़ने के लिए इंकार करना किसी भी नेता का अपना व्यक्तिगत विषय है, जहां तक टिकट वितरण में देरी की बात है स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद दिल्ली में लिस्ट पहुंच गई है और पैनल में नाम जा चुके हैं और जल्द ही प्रत्याशियों के नाम का ऐलान हो जाएगा- करन मेहरा, प्रदेश अध्यक्ष, उत्तराखंड कांग्रेस।