उत्तराखण्ड
कुमाऊं विवि: कोडिंग सिस्टम से कई गड़बडिय़ां भी होंगी ‘डी-कोड’, प्रश्नपत्र छापने के लिए अब फर्म नहीं कोड से आवंटित होगी प्रेस
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- प्रश्नपत्र छापने के लिए अब फर्म नहीं कोड से आवंटित होगी प्रेस
- कुलपति को भी नहीं पता होगा प्रश्नपत्र छापने वाली फर्म का नाम
मनोज लोहनी
दरअसल अब तक ऐसा किसी ने महसूस ही नहीं किया, शायद इसकी जरूरत किसी को नहीं महसूस हुई होगी। कुमाऊं विश्वविद्यालय में सालों से परीक्षाएं हो रही हैं, प्रश्नपत्र छप रहे हैं, मगर आज तक ऐसा पारदर्शी मामला कभी सामने नहीं आया। क्यों नहीं आया इसके पीछे कई सवाल हैं, जिनके उत्तर आने वाले दिनों में नए कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत के कार्यकाल में शायद सामने आ जाएंगे। - जाहिर है कुमाऊं विश्वविद्यालय जैसे बड़े संस्थान में छपाई का काम बड़े स्तर पर होता है। इसमें प्रश्नपत्र तो मुख्य रूप से शामिल हैं ही, इसके अलावा उत्तर पुस्तिकाएं, ऑफिस कार्य के तमाम प्रिंट आदि शामिल हैं। जब बड़ी संख्या में छपाई की बात आती है तो साफ है कि यह काम जिसे दिया जाएगा उसकी बड़ी कमाई निश्चित है। लिहाजा अपनी फर्म को काम दिलाने के लिए संबंधित फर्म कुछ भी कर गुजर सकती है जब तक कि कोई पारदर्शी प्रक्रिया सामने न हो। अब तक टेंडर भी होते रहे हैं मगर किसी खास फर्म को काम नहीं दिया गया ऐसा कह पाना बहुत मुश्किल हो सकता है, ऐसा जानकारों का कहना है।
- अब नए कुलपति प्रो. डीएस रावत ने कार्यभार संभाला तो उन्होंने तमाम ऐसे कदम उठाने शुरू कर दिए हैं जिससे विश्वसनीयता बनी रहे और विवि का खर्च भी कम हों और उसके संसाधन भी बढ़ें।
- इसी दिशा में एक बड़ा कदम है प्रश्नपत्रों की छपाई के लिए अब कोडिंग प्रक्रिया लागू करना। इसमें होगा यह कि विवि ने टेंडर निकाले जो कि नैनीताल के प्रधान डाकघर में पहुंचेंगे। इसके बाद यह टेंडर विवि के कुलसचिव के सामने होंगे। किस-किस फर्म के नाम टेंडर आए हैं, यह नाम केवल कुलसचिव को मालूम होंगे,ं कुलपति को भी नहीं। जितने भी फर्म ने आवेदन किया होगा कुलसचिव उन्हें एक कोड प्रदान कर देंगे। अब कुलपति के सामने फर्म के नाम नहीं बल्कि केवल कोड का जिक्र होगा और उस कोड के हिसाब से योग्य कोड यानि कंपनी को छपाई का ठेका दे दिया जाएगा। पारदर्शिता की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा रहा है क्योंकि शायद उत्तराखंड में ऐसा पहली बार हो रहा है जिसमें छपाई के लिए फर्म के नाम नहीं बल्कि एक कोडिंग के आधार पर कार्य का आवंटन होगा।
- कुमाऊं विवि में अब तक प्रश्नपत्रों की छपाई कहां हुई, कितने की हुई इसकी कोई जानकारी इसलिए नहीं दी जा सकती क्योंकि यह गोपनीय विषय माना जाता है। मगर टेंडर प्रक्रिया में भी वही गोपनीयता है, मगर इतना होते हुए भी सारा मामला अब पारदर्शी होगा। बताया जाता है कि कई बार संस्थाओं जरूरत से ज्यादा छपाई करवाती हैं इस छपाई के पीछे किस छपाई का उद्देश्य होता है यह साफ नहीं होता, मगर उस छपाई को गलत सिद्ध नहीं किया जा सकता है। अब ऐसी छपाई पर भी रोक लगेगी, ऐसा माना जा रहा है।
दिल्ली विवि से ताल्लुक रखने वाले वर्तमान कुलपति प्रो. डीएस रावत ने यह फार्मूला दिल्ली विवि के आधार पर ही यहां लागू करने का फैसला किया है। प्रिंटर को कोडिंग के आधार पर ही वहां काम दिया जाता है। यही व्यवस्था अब यहां लागू होने से उम्मीद है कि अन्य संस्थाएं भी पारदर्शिता के लिए इसे मॉडल मानते हुए लागू करेंगी।

